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electricity bill: डिफाल्टरों से वसूली छूट रहा पसीना, ईमानदार उपभोक्ताओं पर ही बिजली कंपनियां लाद रही घाटा

8736 करोड़ नहीं वसूल पा रहीं वितरण कम्पनियां, उपभोक्ताओं पर हर साल बढ़ रहा बोझ

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जबलपुर। प्रदेश में हर साल बिजली की दर आय-व्यय में अंतर का हवाला देकर बढ़ाने वाली वितरण कम्पनियों की पोल बकाया राशि ने खोल दी है। तीनों विद्युत वितरण कम्पनियां 8736 करोड़ रुपए का बकाया बिल नहीं वसूल पा रा रही हैं। ये आंकड़ा एक अप्रैल से 30 नवम्बर तक का है। डिफाल्टरों से वसूली में प्रदेश की तीनों वितरण कंपनियों के अधिकारियों का पसीना छूट रहा है। जिसका खामियाजा ईमानदार उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। घाटे की भरपाई के लिए बिजली कंपनियां उन्हीं पर बढ़ी हुई कीमतों का भार डाल रही है।

भरपायी नियमित बिल जमा करने वालों से
प्रदेश में सबसे अधिक बिल बकाया मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी पर 4,905 करोड़ रुपए का है। यहां कुल 34 लाख उपभोक्ताओं में लगभग 30 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने लम्बे समय से बिल नहीं जमा किया। पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी में डिफॉल्टरों पर 2189 करोड़ रुपए का बकाया है। 47 लाख उपभोक्ताओं में यहां लगभग 15 प्रतिशत डिफॉल्टर उपभोक्ता हैं। जबकि, पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी में डिफॉल्टर 1642 करोड़ की बिजली जलाकर बिल नहीं जमा कर रहे हैं। बिजली कम्पनियां लाइनलॉस कम करने में जहां फिसड्डी हैं, वहीं बकाया वसूलने में भी काफी पीछे हैं। हर साल टैरिफ याचिका में नियामक आयोग को हजारों करोड़ बकाया बताते हैं। भरपायी नियमित बिल जमा करने वालों से की जाती है।

तीन कारणों से बढ़ रहा बकाया
प्रदेश में 25 प्रतिशत से ज्यादा उपभोक्ता डिफॉल्टर हैं, जो बिल नहीं भरते हैं। ऐसे बकाएदारों की संख्या स्लम एरिया और सघन बस्ती में ज्यादा है। किसी एक महीने गैप होने पर बकाया राशि बढ़ती जाती है और ये बिल नहीं जमा करते। बिजली चोरी के मामलों में भारी जुर्माना लगाया जाता है। ये राशि भी वे जमा नहीं कर पाते। इससे हर महीने बकाया राशि बढ़ती जाती है। वोट बैंक वाले क्षेत्र में बिजली चोरी या बकाएदारों पर होने वाली अधिकतर कार्रवाई राजनीतिक दबाव के चलते अधूरी रह जाती हैं।

स्थाई लगाम का प्रयास है

ऊर्जा विभाग के पदेन प्रमुख सचिव संजय कुमार शुक्ल के अनुसार डिफॉल्टरों से वसूली के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। लोक अदालत , डिस्कनेक्शन और नोटिस की कार्रवाई की जाती हैं। स्थाई लगाम लगाने के लिए प्री-पेड मीटर और अंडरग्राउंड केबलिंग को लेकर भी प्रयास जारी हैं।
13 वर्ष बाद भी वहीं हालात

मप्र यूनाइटेड फोरम के प्रदेश संयोजक वीएस परिहार के अनुसार वर्ष 2004 में मप्र विद्युत मंडल का विखंडन कर तीन वितरण कम्पनियों के गठन के समय लाइन लॉस और बिल बकाया का हवाला दिया गया था। तब लाइन लॉस 40 प्रतिशत और बिल बकाया 4800 करोड़ था। 13 साल बाद भी हालात में अधिक अंतर नहीं आया।