
MP News: मध्यप्रदेश के जबलपुर में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक तैयार कर रहे हजारों फॉरेस्टी ट्री। (फोटो सोर्स: पत्रिका)
MP News: जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने उच्च गुणवत्ता वाले फॉरेस्ट्री ट्रीज तैयार करने में सफलता हासिल की है। ये तेजी से बढ़ेंगे। कार्बन डाईऑक्साइड ज्यादा अवशोषित करेंगे। इससे न केवल जंगलों को तेजी से तैयार करने में मदद मिलेगी, बल्कि किसानों को भी लाभ मिलेगा।
वैज्ञानिकों का दावा है कि ऐसे फॉरेस्ट ट्रीज ज्यादा प्रतिरोधी क्षमता के साथ ही हर मौसम के लिए अनुकूल साबित होंगे। फॉरेस्ट नर्सरी में तीन विभाग मिलकर काम कर रहे हैं। इसके तहत करीब 10 हजार पौधों को तैयार किया जा रहा है। इनमें बांस, शीशम, खमेर सहित कई महत्त्वपूर्ण प्रजातियां शामिल हैं। यह न केवल किसानों के लिए आय का नया स्रोत बनेंगे, बल्कि जंगलों के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी अहम भूमिका निभाएंगे।
तैयार किए जा रहे पौधों की खासियत है कि इनमें कार्बन सोखने की क्षमता ज्यादा है। ये पेड़ वायुमंडल से अधिक मात्रा में कार्बन सोखते हैं। इससे पर्यावरण प्रदूषण कम करने में मदद मिलती है। रूट ट्रेनिंग तकनीक से जड़ें गहरी और मजबूत बनती हैं। इससे पानी कम लगता है। टिश्यू कल्चर और चयनित बीजों से पौधे अधिक स्वस्थ और लंबे समय तक जीवित रहते हैं। इस कारण किसानों को पानी, खाद और देखभाल पर कम खर्च करना पड़ता है।
कृषि फॉरेस्ट्री से डॉ. राकेश बाजपेयी, एग्रोनामी से डॉ. एसबी अग्रवाल एवं कृषि वानिकी से डॉ. सोमनाथ सरवडे की टीम काम कर रही है। फिलहाल वैज्ञानिकों ने जबलपुर में 10 हजार फॅारिस्ट्री ट्रीज की नर्सरी तैयार की है। इनकी संख्या और बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। इन पौधों में बांस, खमेर, शीशम, करंज, नीम के अलावा फलदार पौधो में इमली, आम, जामुन, मुनगा, सीताफल को शामिल किया गया है, ताकि किसानों को लाभ पहुुंचाया जा सके।
--20% ग्रोथ ज्यादा
--25% ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता
--15% अधिक क्षमताकार्बन सोखने की
--30% कम खर्च देखभाल में
-एग्रो फॉरेस्ट्री
- एग्रोनॉमी
- फॉरेस्ट्री
हमारी कोशिश है कि फॉरेस्ट ट्रीज की बेहतरीन किस्में तैयार कर किसानों तक पहुंचाई जाएं। इससे न केवल वनों का संरक्षण होगा, बल्कि पर्यावरण में सुधार और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी मजबूती आएगी। ये किसानों को उपलब्ध कराए जाएंगे। कीमत में मात्र 15-30 रुपए के आसपास होगी।
- डॉ. सोमनाथ सरवडे, वैज्ञानिक कृषि वॉनिकी
Published on:
16 Aug 2025 11:37 am
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