
hidden mysteries
जबलपुर. पुण्य सलिला रेवा के संस्कारधानी में स्थित हर घाट से कोई न कोई रोचक तथ्य जुड़ा हुआ है। इनकी गाथाएं पौराणिक व ऐतिहासिक हैं। घाटों का यही महत्व नर्मदा प्रकटोत्सव पर लाखों श्रद्धालुओं को अपने आकर्षणजाल में बांधकर खींचता है।
माता गौरी ने किया था तप
नर्मदा ङ्क्षचतक द्वारिका नाथ शास्त्री ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि गौरीघाट पर माता गौरी यानि मां पार्वती ने तपस्या की थी। उनकी स्मृति को दर्शाता गौरी कुंड यहां मौजूद है।
रेवा तीरे कण-कण शंकर, बूंद-बूंद अर्चन श्रीराम व शिवजी की जुड़ी हैं स्मृतियां
शिवलिंग के लिए स्वयं बन गई जिलहरी
गौरीघाट से बांयी ओर कुछ दूरी पर स्थित नर्मदा का एक और प्राचीन घाट है। माना जाता है कि यहां भगवान शिव की पिंडी स्थापित होने के लिए घाट के पत्थरों से जिलहरी स्वयं निर्मित हो गई थी, जो आज भी मौजूद है।
सिद्धघाट का पानी है दवा
सिद्धघाट में योगी तपस्वी और ध्यानी भगवान शिव और शक्ति स्वरूपा की भक्ति में लीन होकर बैठा करते थे। यहां एक कुंड है जिसमें पूरे साल पानी भरा रहता है और बहकर नर्मदा में मिल जाता है। तपस्वियों को शिव-शक्ति से सिद्धियां यहीं मिला करती थीं, जिससे इसका नाम सिद्धघाट पड़ गया। यहां के कुंड की मिट्टी शरीर में लगाने से चर्म रोग समाप्त हो जाते हैं।
सप्तर्षियों ने तिल से किया था स्नान
प्राचीनकाल में तिल मांडेश्वर मंदिर यहां था। जहां भगवान शिव की विशेष आराधना पूजन व ध्यान किया जाता था। सप्त ऋषियों ने यहीं तपस्या करके तिल से स्नान किया था। इसलिए इस तट का नाम तिलवारा घाट पड़ा। पंचवटी घाट को लेकर मान्यता है कि 14 वर्ष वनवास के दौरान भगवान श्रीराम यहां आए और भेड़ाघाट स्थित चौसठ योगिनी मंदिर में ठहरे थे।
लम्हेटा में पशुपतिनाथ
नर्मदा किनारे प्राचीन मंदिरों के कारण इस घाट का विशेष महत्व है। इस घाट पर श्रीयंत्र मंदिर है, जिसे लक्ष्मी माता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में अनुष्ठान करने से सुख-समृद्धि की प्राप्त होती है। नेपाल की तरह यहां भी भगवान पशुपति नाथ का मंदिर है। जानकारों के अनुसार यह मंदिर बेहद प्राचीन है। चूंकि यह तट लम्हेटा गांव के अंतर्गत आता है, इसलिए इसे लम्हेटा घाट कहा गया है।
Published on:
16 Feb 2024 11:13 am
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