12 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

देश में सबसे पहले मप्र हाईकोर्ट ने हिन्दी में मुकदमा पेश करने की दी इजाजत

मातृभाषा दिवस आज : हाईकोर्ट की तीनों खंडपीठों में वकीलों को हिन्दी में बहस करने की छूट

2 min read
Google source verification
MP Highcourt

MP Highcourt

जबलपुर. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को देश का पहला हाईकोर्ट होने का गौरव प्राप्त है, जहां मातृभाषा को तवज्जो दी गई है। मप्र हाईकोर्ट ने इसके लिए बाकायदा नियम बनाकर मातृभाषा हिन्दी में लिपिबद्ध कर दायर की जाने वाली याचिकाओं को स्वीकार करने का प्रावधान किया। हिन्दी मेें दायर याचिकाओं पर हिन्दी में ही निर्णय भी दिए। पूर्व चीफ जस्टिस शिवदयाल, जस्टिस आरसी मिश्रा और जस्टिस गुलाब गुप्ता ने सिंगल बेंच में बैठते हुए हिन्दी में कई फैसले दिए। 2008 के बाद से है।

जुटे विद्वान, दायर हुई याचिका
1980-90 के बीच कुछ मातृभाषा प्रेमियों ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में हिन्दी में कामकाज को आधिकारिक स्वीकृति देने की मांग उठाई। इन हिन्दी प्रेमियों के समर्पण ने इसे धीरे-धीरे राष्ट्रीय आंदोलन का स्वरूप दे दिया। बम्बादेवी मंदिर के पास रहने वाले वयोवृद्ध अधिवक्ता शीतला प्रसाद त्रिपाठी के अथक प्रयासों से 1990 में हिन्दी को न्यायालयीन कामकाज की भाषा बनाने का संकल्प लेकर जबलपुर में देश के वरिष्ठ न्यायविद् एकत्रित हुए। सबकी सहमति से हिन्दी को हाईकोर्ट की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए जनहित याचिका दायर की गई। संविधान के अनुच्छेद 348, 343, 345, 351 के अंतर्गत दिए गए प्रावधानों का हवाला दिया गया।

लंबा रहा संघर्ष
लम्बी-लम्बी दलीलों और बहस के बाद कोर्ट ने याचिका का निराकरण कर राष्ट्रपति और राज्यपाल को इस सम्बंध में अभ्यावेदन देने का निर्देश दिया। इसके तारतम्य में हिन्दी समर्थकों ने कई बार अभ्यावेदन दिए। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस को भी आवेदन पत्र देकर हिन्दी को स्वीकार करने की मांग हुई। अंतत: 2008 में हाईकोर्ट ने अपने नियमों में संशोधन किया। संशोधित मप्र हाईकोर्ट रूल्स एंड ऑर्डर 2008 में हिन्दी भाषा को अंगीकार कर हिन्दी में याचिका दायर करने और बहस करने की अनुमति दी गई।

संविधान में तो प्रावधान था, लेकिन हाईकोर्ट में हिन्दी को महत्व नहीं दिया जाता था। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट देश का पहला ऐसा हाईकोर्ट है, जहां हिन्दी में कामकाज की अनुमति दी गई। हमें गर्व है कि इसके लिए हमने संघर्ष किया।
शीतला प्रसाद त्रिपाठी, अधिवक्ता