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shivratri 2018: इन ढाई घंटों में शिवपूजा का मिलता है विशेष फल

फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि भगवान शिव को अति प्रिय है

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प्रदोष व्रत के साथ ये ग्रह दे रहे शुभ संकेत, राजनीति में इनको मिलेगा फायदा- पंचांग

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जबलपुर . महाशिवरात्रि- यानि देवों के देव महादेव का महापर्व। वैसे तो भगवान शिव को प्रत्येक माह की चतुर्दशी तिथि प्रिय है, किंतु फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि भगवान शिव को अति प्रिय है। महाशिवरात्रि के दिन देवों के देव भगवान भोलेनाथ का विवाह हुआ था, उस खुशी में यह पर्व मनाया जाता है। सत्वगुण, रजोगुण तथा तमोगुण तीनों गुणों में से तमोगुण की अधिकता दिन की अपेक्षा रात्रि में अधिक होती है। शास्त्रों में इस तिथि के विषय में कहा गया है कि जिनकी जटाओं में गंगा भी शरण लेती है, तीनों लोक (आकाश, पाताल व मृत्यु) के वासियों को प्रकट करते हैं, जिनके नेत्रों से तीन अग्नि निकल कर शरीर का पोषण करती हैं, ऐसे श्रीशिव भगवान इस तिथि में विवाह रचा कर प्रसन्न हैं।


करीब ढाई घंटे के प्रदोष काल में शिवपूजन-
सूर्यास्त होने के बाद रात्रि होने के मध्य की अवधि को शास्त्रों में प्रदोषकाल कहा गया है। सरल शब्दों में सूर्यास्त होने के बाद के 2 घंटे 24 मिनट की अवधि को प्रदोषकाल कहते हैं। मान्यता है कि प्रदोष काल के समय में भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं। प्रदोषकाल में ही शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि प्रदोषकाल में शिव पूजा या शिवरात्रि ? में शिव जागरण करना विशेष कल्याणकारी माना गया है। सभी 12 ज्योतिर्लिंगों का प्रादुर्भाव भी प्रदोष काल महाशिवरात्रि तिथि में ही हुआ था। शिवरात्रि के दिन विधिपूर्वक शिवपूजा कर ऊं नम: शिवाय मंत्र का यथाशक्ति अधिक से अधिक जाप करें।


महाशिवरात्रि व्रत के फल- महाशिवरात्रि व्रत साधक को मोक्ष प्राप्ति के योग्य बनाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति का कल्याण होता है और इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है। यह व्रत धन, सुख-सौभाग्य, समृद्धि दिलाने वाला है। भोलेनाथ का एक नाम नीलकंठ भी है। भगवान का व्रत करने से व्यक्ति की धन के प्रति शुधा, पिपासा, लोभ, मोह आदि से मुक्ति मिलती है। बुद्धि निर्मल होती है और जीवन सत्कर्मों की ओर प्रशस्त होता है।


महाशिवरात्रि पर्व का महत्व- इस पर्व के बारे में गोस्वामी तुलसीदासजी ने भगवान राम के मुख से भी कहलावाया है
शिवद्रोही मम दास कहावा। सो नर मोहि सपनेहु नहिं भावा।
इस पर्व के महत्व को शिवसागर ग्रंथ में और अधिक महत्ता मिली है-
धारयत्यखिलं दैवत्यं विष्णु विरंचि शक्तिसंयुतम।
जगदस्तित्वं यंत्रमंत्रं नमामि तंत्रात्मकं शिवम।

इसका अर्थ यह है कि विविध शक्तियां, विष्णु तथा ब्रह्मा जिसके कारण देवी व देवता के रूप में विराजमान हैं, जिनके कारण जगत का अस्तित्व है, जो यंत्र , मंत्र हैं, ऐसे तंत्र के रूप में विराजमान भगवान शिव को नमस्कार है।