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चीफ जस्टीस सुरेश कुमार कैत का इशारा, जज के 85 पद हों स्वीकृत, खाली हो रहा एमपी हाईकोर्ट

MP High Court: आज 23 मई को रिटायर हो रहे चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत, एमपी हाईकोर्ट में जजों की कमी को लेकर सरकार को किया इशआरा, 85 नए पद सृजित करने का दिया प्रस्ताव, वर्तमान 53 पदों में से 20 पदों पर भी की जानी चाहिए नियुक्ति, हजारों पक्षकार एक दशक से न्याय का इंतजार कर रहे; अभी एक जज के पास औसतन 15000 केस

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MP High Court jabalpur

MP High Court jabalpur

MP High Court: मप्र हाईकोर्ट के 28 वें चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत हाईकोर्ट में जजों की भारी कमी की ओर इशारा करते हुए 85 जजों के पदों की स्वीकृति दिए जाने के प्रस्ताव की चर्चा कर नई बहस छेड़ दी है। कानूनविद और वरिष्ठ अधिवक्ता इसका स्वागत कर रहे हैं पर सरकारों के रवैये पर निराशा भी जाहिर कर रहे हैं। क्योंकि अभी तो मौजूदा स्वीकृत पद ही नहीं भरे जा रहे हैं।

दरअसल, चीफ जस्टिस 23 मई को रिटायर हो रहे हैं, लेकिन उनके सम्मान में विदाई समारोह चार दिन पहले ही आयोजित किया गया था। इस दौरान उन्होंने जजों पर पेंडिंग केसों के बढ़ते दबाव पर चिंता जताई थी। उन्होंने इसका हवाला देते हुए कहा था कि राज्य सरकार को एमपी हाईकोर्ट में जजों की संख्या 85 किए जाने का प्रस्ताव दिया था, जो लंबित है।

खंडपीठों में 4.80 लाख से ज्यादा केस पेंडिंग

चीफ जस्टिस कैत ने बताया था कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की मुख्य पीठ और दोनों खंडपीठों में पेंडिंग केसों की संख्या 4.80 लाख है। जबकि 53 स्वीकृत पदों के विरुद्ध केवल 33 जज ही पदस्थ हैं। इस संदर्भ में जजों की संख्या बढ़ाने की बात बहुत प्रासंगिक हो गई है। पर इससे भी अधिक जरूरी है कि रिक्त पदों को भरने में ही तत्परता नजर आए।

ऐसे होती है हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति

हाईकोर्ट में जजों की कमी और बढ़ती पेंडेंसी पर विधि विशेषज्ञ व बार काउंसिल ने भी सरकारों की प्राथमिकता पर सवाल उठाए। उनका कहना है कि सरकार को इसके प्रति उतनी गंभीर नहीं है। आंकड़ों की माने तो बीते तीन वर्षों में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केंद्र सरकार के पास विभिन्न हाईकोर्टों में जजों के लिए 303 नाम भेजे। लेकिन, महज 170 नाम पर ही मंजूरी की मुहर लग पाई है।

इसे विधि विशेषज्ञ सरकार की उदासीनता से जोड़ते हैं। विधिवेत्ताओं का मानना है कि सरकार चाहे तो हाईकोर्टों में जजों की त्वरित नियुक्तियां कर इस समस्या का हल कर सकती है।

वरिष्ठ वकीलों ने बताया कि न्यायिक निर्देशों और निर्णयों के अनुसार, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नामों की अनुशंसा उच्च न्यायालय कॉलेजियम करती है। मूल प्रस्ताव सरकार को भेजी जाती है। सीएम इस पर परामर्श कर इसे राज्यपाल को भेजते हैं। राज्यपाल केंद्र को भेजते हैं। फिर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिफारिश पर विचार कर केंद्र को नियुक्ति के लिए नाम सिफारिश करता है।

मध्यप्रदेश के 4 नाम पेंडिंग

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के लिए, 17 अक्टूबर, 2023 को अनुशंसित दो नामों को रोक दिया गया था। इनमें से एक नाम को फरवरी 2024 में मंजूरी दी गई थी, लेकिन दूसरे नाम को अभी भी सरकार द्वारा रोका गया है। इसके बाद 9 जनवरी, 2024 को तीन नामों की सिफारिश की गई थी, लेकिन अभी भी इन नामों को बिना कारण स्पष्ट किए ही मंजूरी नहीं दी गई है।

रिटायरमेंट से पद खाली हो रहे

न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार की देरी से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट खाली हो रहा है। हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों को रोकने का कारण समझ से परे है। जिस तरह से रिटायरमेंट से पद खाली हो रहे हैं, उससे न्यायिक व्यवस्था प्रभावित हो रही है।

- संजय वर्मा, पूर्व अध्यक्ष मप्र हाईकोर्ट बार एसोसिएशन

तय हो समयावधि

हाईकोर्ट की मुख्यपीठ में कम से कम 60 जज सहित तीनो खंडपीठों मे 90 जज होने चाहिए। लेकिन, सरकार राजनीतिक सोच के चलते अनुशंसित नामों को अटकाए रहती है। इसके लिए समयावधि तय की जानी चाहिए। जजों की नियुक्ति में गुणवत्ता का भी ध्यान रखना होगा।

-मनोज शर्मा, पूर्व अध्यक्ष मप्र हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोशिएशन

सरकार दिखाए गंभीरता

जजों की नियुक्ति करने के मामले में सरकार की गंभीरता कम दिखती है। कॉलेजियम की अनुशंसा पर विचार न कर उसे रोके रखना अच्छा संकेत नहीं है। इससे मंशा पर भी सवाल उठेंगे ही। जल्द से जल्द जजों की नियुक्तियां की जाना चाहिए। यही न्यायहित में होगा।

-आरके सिंह सैनी, वाइस चेयरमैन स्टेट बार काउंसिल

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