
mysterious ekadashi temple jabalpur
जबलपुर। देश में एक से बढ़कर एक मंदिर और धार्मिक स्थान हैं। इनमें कई ऐसे हैं जिनका रहस्य आज भी लोगों को दांतों तले अंगुलियां दबाने के लिए विवश कर देता है। जबलपुर के गढ़ा स्थित माला देवी की प्रतिमा का अपने आप रंग बदलना, बालाजी मंदिर में प्रवेश करते ही अलग अहसास होना जैसे अन्य कई रहस्य हैं। ऐसा ही रहस्य जबलपुर लम्हेटाघाट के समीप गोपालपुर स्थित एकादशी देवी के मंदिर में समाया हुआ है। यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। इसे लक्ष्मीनारायण मंदिर के नाम से जाना जाता है। जानकारों के अनुसार यह देश पहला ऐसा अद्भुत मंदिर है जहां एकादशी देवी की प्रतिमा विराजमान है। इस मंदिर के परिसर में आते ही आज भी अजब से सम्मोहन का आभास होता है, जो आत्मिक सुकून का आभास कराता है।
श्रेष्ठ है व्रत
वैदिक परम्परा में दो ही व्रत श्रेष्ठ बताए गए हैं.. एकादशी और प्रदोष। इनमें भी एकादशी का महात्म्य अधिक बताया गया है। इस तिथि के अधिष्ठाता स्वयं नारायण हैं, जो जगत के आधार और पालनहार हैं। बहुत कम लोगों को ही मालूम होगा कि जबलपुर में एकादशी माता का मंदिर भी है। सदियों पुराने इस मंदिर में मां एकादशी भगवान नारायण के साथ गरुण पर सवार दिखाई दे रही हैं। अन्य भी प्राचीन व दुर्लभ प्रतिमाएं हैं। जबलपुर-नागपुर राजमार्ग पर सगड़ा से छह किमी दूर लम्हेटाघाट गोपालपुर गांव में स्थित यह प्राचीन मंदिर लक्ष्मी-नारायण के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो यहां प्रत्येक माह एकादशी तिथि पर पूजन-अर्चन के लिए भक्तों का तांता लगता है। माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी हो जाती है। मध्य भारत का यह एक मात्र एकादशी देवी मंदिर है।
नौ शिखर बढ़ाते हैं शोभा
मंदिर के प्रमुख पुजारी आरके प्यासी ने बताया कि यह मंदिर नौ शिखरों वाला नौचक्र साधन युक्त मंदिर है। इस मंदिर के चारों ओर एक-एक कोणों पर एक-एक मंदिर बना है। बीच में मुख्य मंदिर है। कोणों वाले मंदिर में शिवलिंग साथ कार्तिकेय, सरस्वती, अन्नपूर्णा, हनुमान आदि देवी-देवताओं की प्रतिमा विराजमान हैं। मंदिर के अंदर कक्ष में नर्मदा, शिव , गणेश आदि की मूर्तियां हैं। बीच में एक चबूतरे पर ग्रेनाइट काले पत्थर की मानव गरुण पर आरूढ़ नारायण की प्रतिमा है। उसके समीप मानव गरुड़ की हथेली पर एकदशी देवी खड़ी हैं। कक्ष के फर्श पर सफेद संगमरमर की एक और मानव गरुड़ पर आरूढ़ नारायण की मूर्ति है जिनमें विष्णु के साथ एक देवी भी विराजमान हैं।
दो देवियों के साथ हैं भगवान
मंदिर में एक ही परिसर पर भगवान नारायण दो अलग-अलग मुद्राओं में दो देवियों के साथ विराजमान हैं। काले पत्थर की देवी नारायण के साथ एक हटकर पुत्री भाव की दृष्टव्य हैं। पर सफेद पत्थर के नारायण के अंक में देवी पत्नी के भाव विराजी दिखाई देती हैं। काले पत्थर की देवी एकादशी है जबकि सफेद पत्थर की देवी लक्ष्मी हैं। प्राय: सभी ज्ञात एकादशी मंदिरों में एकादशी की काले पत्थर की मूर्ति है, जो कि यहां भी स्थित है।
एकादशी कुंड
मंदिर के सामने नर्मदा की धारा में अलग-अलग कुंड दिखाई देते हैं। जिनमें से एकादशी कुंड अलग ही दिखाई देता है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि इस कुंड में एकदशी तिथि पर स्नान-ध्यान करने से विशेष पुण्य लाभ प्राप्त होता है। प्रत्येक माह एकादशी तिथि पर यहां बड़ी संख्या में साधक स्नान व पूजन-अर्चन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया कि एकादशी कुंड के समीप गुप्त गंगा का कुंड भी है यहां प्रत्येक वर्ष गंगा दशहरा के दिन विशेष पूजन-अर्चन किया जाता है। इस दिन यहां गंगा दूध धारा के रूप में आकर नर्मदा से मिलती है।
अलग ही आभास
गढ़ा निवासी अजय तिवारी व ज्योतिषाचार्य पं. रामसंकोची गौतम अक्सर एकादशी मंदिर में जाते हैं। पं. गौतम ने बताया कि प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर की स्थापना विशेष काल में हुई होगी। इसका आभास आज भी यहां परिसर में होता है। पं. अखिलेश दीक्षित ने बताया कि मंदिर परिसर पर आने वाले लोग आज भी कुछ अलग अहसास करते हैं। परिसर में आते ही एक अजीब सा सम्मोहन पैदा होता है और मन शांत हो जाता है। कई लोग बाधाओं की शांति के लिए के लिए यहां आते हैं। जिनका मन विचलित है, उन्हें यहां निश्चित तौर पर स्थिरता प्राप्त होती है। इसे मां एकादशी और उनकी अनन्य सेविका एकादशी का प्रताप भी माना जा सकता है।
Published on:
28 Dec 2017 07:37 pm
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