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वैज्ञानिकों का कमाल, अब बेर-पलाश व गूलर से भी हो सकेगा लाख का उत्पादन

जबलपुर के राज्य वन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों को सफलता, सात विभिन्न पेड़ों पर तैयार हुई लाख की कॉलोनियां  

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Yellow Palash blooming in the forest of Nimar

Yellow Palash blooming in the forest of Nimar

जबलपुर। राज्य वन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई है। विशेषज्ञों का कमाल यह है कि उन्होंने विशेष प्रजाति के पेड़ों में लाख के कीटों का विकास कर लिया है। मेजबान (होस्ट) पौधों में लाख के कीट आ गए हैं। उनमें सैकड़ों कॉलोनियां नजर आ रही है। राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान रांची के विशेषज्ञों ने हाल ही में संस्थान में पौधों में लाख की कॉलोनियों को विभिन्न मापदंड़ों पर परखते हुए वैज्ञानिकों के प्रयास को सराहा है। प्रत्येक पेड़ से 40 किलो तक का उत्पादन किसान को मिल सकेगा।

सात पेड़, आठ माह की मेहनत
वैज्ञानिकों को सात पेड़ों पर आठ माह के प्रयास के बाद लाख के कीट पैदा करने में सफलता मिली है। इसमें सेमियालता, कुसुम, बेर, पलाश, भालिया, रेन ट्री और गूलर शामिल हैं। इन पेड़ों पर लाख के कीटों ने लाइफ साइकिल चक्र को पूरा किया है। सबसे ज्यादा उत्पादन कुसुम और सेमियालता के पेड़ में हुआ है। वैज्ञानिक डॉ. अनिरुद्ध मजूमदार ने बताया कि होस्ट ट्री में लाख कोष में पीले धब्बे नजर आ रहे हैं। शिशु लाख कीट की कॉलोनियां तैयार होने लगी हैं। इन्हें अब दूसरे पेड़ों पर फैलाकर कीट संचारण किया जा रहा है।

दो हजार किसानों को दी गई ट्रेनिंग
जबलपुर के पनागर, सिहोरा, मझौली, कुंडम क्षेत्रों में लाख की खेती किसान कर रहे हैं। महाकोशल में लाख की खेती को बढ़ावा देने के लिए डिंडौरी, मंडला, बालाघाट, बैतूल, सिवनी जिले में किसानों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। हाल ही में प्रदेश और महाराष्ट्र के करीब 2 हजार किसानों को लाख कल्टीवेशन की ट्रेनिंग दी गई है।

किसानों को उचित मूल्य पर मिलेगी लाख
किसानों को बीहन लाख उपलब्ध कराने के लिए विक्रय दर भी निर्धारित किया गया है। कुसुमी बीहन लाख (बेर वृक्ष से प्राप्त) के लिए 640 रुपए प्रति किलो और रंगीन बीहन लाख (पलाश वृक्ष से प्राप्त) के लिए 375 रुपए प्रति किलो की दर रखी गई है।


उच्च गुणवत्ता की लाख तैयार करने और उसका उत्पादन बढ़ाने के लिए पेड़ों का चयन किया गया था। वैज्ञानिक तकनीक, तापमान नियंत्रण, खाद, मिट्टी के उचित प्रबंधन से इसमें सफलता मिली है। होस्ट प्लांट में लाख के कीट पैदा हुए हैं। इसकी स्टिक तैयार कर किसानों को दी जाएगी।
रवींद्रमणि त्रिपाठी, उपसंचालक, एसएफआरआई