18 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

pitru paksha mahalaya 2017 कई जन्मों तक भूखी रहती हैं आत्माएं, पितृ पक्ष अमावस्या पर जरूर करें ये काम

प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि होती है, किंतु आश्विन मास की अमावस्या पितृ पक्ष के लिए उत्तम मानी जाती है

2 min read
Google source verification
Pitru Paksha

Pitru Paksha date time

जबलपुर। प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि होती है, किंतु आश्विन मास की अमावस्या पितृ पक्ष के लिए उत्तम मानी जाती है। इसे सर्वपितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा महालय भी कहा जाता है। इस वर्ष यह 20 सितंबर को है।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन किया श्राद्ध सभी पितरों को प्राप्त होता है। जो लोग शास्त्रोक्त समस्त श्राद्धों को न कर पाते हों, वह कम से कम आश्विन मास में पितृगण की मरण तिथि के दिन यदि श्राद्ध करें तो यह उत्तम होता है। जो व्यक्ति पितृपक्ष के पन्द्रह दिनों तक श्राद्ध तर्पण आदि नहीं कर पाते या जिन्हें पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सबके श्राद्ध, तर्पण इत्यादि इसी अमावस्या पर किए जाते हैं, इसलिए अमावस्या के दिन पितर अपने पिंडदान व श्राद्ध आदि की आशा से आते हैं, यदि उन्हें वहां पिंडदान या तिलांजलि आदि नहीं मिलती, तो वे अप्रसन्न होकर चले जाते हैं।

Ganesh Visarjan 2017 ऐसे करें गणेश जी का विसर्जन पूरे साल बानी रहेगी कृपा, जानें मुहूर्त विधि और शुभ समय

पितृदोष से पीड़ित व्यक्ति करें तर्पण
इससे पितृदोष लगता है और अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। महालय का तात्पर्य महा यानी उत्सव दिन और आलय यानी के घर अर्थात कृष्ण पक्ष में पितरों का निवास माना गया है, इसलिए इस काल में पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं, जो महालय भी कहलाता है। यदि कोई पितृदोष से पीडि़त हो या पितृदोष शांति के लिए अपने पितरों की मृत्यु तिथि मालूम न हो तो उसे सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध-तर्पण अवश्य करना चाहिए।

श्राद्ध नियम
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियमों का अनुमोदन किया गया है, जिनका पालन कर श्राद्ध क्रिया उचित प्रकार से की जा सके और पितरों को शांति प्राप्त हो सके। यह नियम इस प्रकार हैं कि- दूसरे के निवास स्थान या भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए।

anant chaturdashi अनंत चतुर्दशी 2017 पर बांधें ये चौदह गांठ, दूर होंगी साडी मुसीबतें, जानें पूजा विधि और व्रत कथा

श्राद्ध में पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मण द्वारा पूजा कर्म करवाए जाने चाहिए। ब्राह्मण का सत्कार न करने से श्राद्ध कर्म के सम्पूर्ण फल नष्ट हो जाते हैं। श्राद्ध में सर्वप्रथम अग्नि को भोग अर्पित किया जाता है, तत्पश्चात हवन करने के बाद पितरों के निमित्त पिंडदान किया जाता है। चांडाल और श्राद्ध के संपर्क में आने पर श्राद्ध का अन्न दूषित हो जाता है। रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त दोनों संध्या व पूर्वाह्न काल में भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए।

पिंडदान
श्राद्ध में पिंडदान का बहुत महत्व है। बच्चों व संन्यासियों के लिए पिंडदान नहीं किया जाता। श्राद्ध में बाह्य रूप से जो चावल का पिंड बनाया जाता है, जो देह को त्याग चुके हैं वह पिंड रूप में होते हैं।