
जबलपुर. जिस तरह मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम आदर्श पुरुष कहलाते हैं। उसी तरह उनके आदर्श भी जीवन जीने की कला सिखाते हैं। बस युवाओं को उनके आदर्शों पर अमल करने की जरूरत है। युवा श्रीराम के मित्रता, संयम, आचरण और दयालुता के भाव से आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं। रामनवमी के अवसर पर आइए जानते हैं ऐसे कौन से प्रभु राम के सूत्र हैं, जिनसे युवा सफल बन सकते हैं।
संकल्पित होने का गुर
जीवन में आगे बढऩे के लिए संकल्प लेना आवश्यक है। यदि किसी काम की शुरुआत निश्चय और संकल्प के साथ की जाती है तो उसमें सफलता जरूर मिलती है।
युवाओं के लिए : युवाओं को श्रीराम का यह सूत्र जरूर अपनाना चाहिए, क्योंकि युवा अक्सर विफल होने पर काम छोडऩा बेहतर समझते हैं। ऐसे में काम को लगन होकर करने से ही सफल होने का मंत्र श्रीराम से सीखना होगा।
लीडर बनने का हुनर
श्रीराम से हमेशा कुशल प्रबंधक होने का प्रमाण दिया है। लंका जाते वक्त कई बार मुश्किलों का दौर रहा, लेकिन उन्होंने बेहतर लीडर के तौर पर खुद कई बार मोर्चा संभाला।
युवाओं के लिए : लीडरशिप का गुर सिर्फ कार्यक्षेत्र के दौरान ही नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकार और लोगों की मदद के दौरान भी लीडर बनने का हुनर दिखाना चाहिए।
शांत मन का भाव
प्रभु श्रीराम का सबसे खास गुर उनका शांत स्वाभाव था। कठिन से कठिन परिस्थितियों से वे मुस्कुराकर निपट लिया करते थे।
युवाओं के लिए : वर्तमान दौर में शांत मन का होना हर युवा के लिए जरूरी है। क्योंकि छोटी-छोटी बातों पर गुस्सैल रवैया बढऩे के कारण युवा कार्यों पर फोकस नहीं कर पाते। ऐसे में जरूरी है कि सफलता के लिए शांत मन का सूत्र युवाओं को अपनाना चाहिए।
सहयोग का भाव
श्रीराम के आचरण में मौजूद मित्रता और सहयोग का भाव उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम बनाता है। हनुमान, सुग्रीव और विभीषण से उनकी मित्रता के कारण ही वे मुश्किलों को पार कर पाए।
सीख
युवाओं को मित्रता और आपसी सहयोग से जीवन की हर मुश्किलों को पार करने का हुनर श्रीराम से सीखना चाहिए।
प्रत्येक का सम्मान
श्रीराम में सम्मान भाव का होना ही उन्हें आदर्श पुरुष बनाता है। वे माता-पिता और परिवार के लिए हमेशा समर्पित थे। जिससे भी मिलते थे, उनके लिए सम्मान भाव रखते थे।
सीख
वर्तमान में युवाओं में सभी के लिए सम्मान भाव कम है। आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण तभी संभव है जब वे सभी के लिए दयालुता का भाव और सम्मान रखेंगे।
कॉलेज लाइफ से जुड़े युवाओं के पास धैर्य की कमी है। स्वयं कभी-कभी चीजें अनुरुप ना होने के कारण गुस्सैल रवैया अपनाती हूं, लेकिन इस बीच जब प्रभु राम का धैर्य का भाव याद आता है तो स्थिति आसान लगती है।
जीवन में समर्पण से बढकऱ कुछ नहीं है। कई बार हम लोगों से तब तक ही जुड़ाव रखते हैं, जब तक हमारा काम ना हो जाए। ऐसे में श्रीराम के सूत्र याद आते हैं जहां उन्हें हर रिश्ते के प्रति समर्पण दिखाया था। वर्तमान में यह आवश्यक है।
Updated on:
17 Apr 2024 12:44 pm
Published on:
17 Apr 2024 12:41 pm
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