
sparrow day
जबलपुर. बीच शहर में अब गौरैया नहीं दिखती, लेकिन यदि आप शहर से पांच से दस किमीं आगे ग्रामीण अंचलों की ओर रुख करें तो वहां आज भी आपको गौरैया की अच्छी तादाद मिलेगी। यह बात शहर के पक्षी विशेषज्ञ कह रहे हैं, जिन्होंने हाल ही में बर्ड वॉचिंग सर्वे के दौरान यह स्थिति समझी है। सिटिजन फॉर नेचर सोसाइटी के सदस्यों ने शहर के आसपास के गांवों में बर्ड की प्रजातियों को खोजा था, जिसमें उन्हें गौरैया की काफी संख्या मिली। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि गौरैया कम नहीं हुई है, बल्कि वह शहरों से गांवों की ओर स्थानांतरित हो गई है, क्योंकि उन्हें शहरी परिवेश में न तो उन्हें भोजन मिल रहा है और न ही उनके रहने के लिए नेस्टिंग की व्यवस्था हो पा रही है। कच्चे और खपरैल के मकान अब शहरों में देखने नहीं मिलते हैं। कॉन्क्रीट के महल बन गए हैं और खिड़कियां भी पैक हो चुकी हैं। एेसे में वे शहरी वातावरण में अनुकूलन नहीं कर पा रही हैं।
संस्कारधानी के विशेषज्ञ कह रहे हैं कि गौरैया शहर से कुछ दूर के गांवों पर निवास करने या वेकेशन मनाने के लिए चली गई हैं। उन्हें विश्वास है कि यदि लोग अवेयर हुए तो ये गौरैया वापस लौट आएंगी।
इस विश्व गौरैया दिवस आप संकल्प करें कि अपने घरों में आर्टिफिशियल नेस्टिंग करें या गौरैया के लिए भोजन की व्यवस्था करें तो वह दिन दूर नहीं होगा, जब शहर में भी वापस गौरैया की चहचहाहट लौट आएगी।
आर्टिफिशियल नेस्टिंग करें
पक्षी विशेषज्ञ एवं सिटिजन फॉर नेचर सोसाइटी के डॉ. विजय सिंह यादव का कहना है कि शहर के लोग आर्टिफिशियल नेस्टिंग कर गौरैया को अपने अंगना बुला सकते हैं। घर बनाते वक्त पक्षियों के घोंसले के लिए कुछ व्यवस्था जरूर करें। पक्षी विशेषज्ञ जगत फ्लोरा बताते हैं कि शहर में जो घर कच्चे बने हुए हैं या जिन लोगों ने आर्टिफिशियल घोंसले बनाए हैं, वहां पर गौरैया आती है।
एेसी है स्थिति
- साल २००० से २०१० के बीच शहर में लाखों की संख्या में गौरैया देखती जाती थीं।
- साल २०११ से २०१७ के बीच इनकी स्थिति हजारों में बची है
- शहर के ५ से १० किमी की दूर गांवों में दिख रहा है इनका अस्तित्व
- गौरैया नहीं होने से ८० फीसदी तक कीटों का इन्फेक्शन बढ़ गया है
Published on:
19 Mar 2019 09:57 pm
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