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बच्चों में नजर आने वाले लक्षणों को पहचानें, आभासी दुनिया से दूर रखकर सम्भव होगी ‘ऑटिज्म से फाइट’

बच्चों में नजर आने वाले लक्षणों को पहचानें, आभासी दुनिया से दूर रखकर सम्भव होगी ‘ऑटिज्म से फाइट’  

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autism disease

autism disease

जबलपुर. कोविड के दौरान जन्म लेने वाले बच्चों में ऑटिज्म बीमारी अधिक नजर आ रही है। भीड़ से कतराना, स्कूल में अलग रहना, किसी बात पर कोई रिस्पॉन्स नहीं करना। यह सब ऑटिज्म की श्रेणी में आता है। कोविड के समय के मोबाइल ऑटिज्म भी बच्चों में तेजी से बढ़ा है, जिसके कारण बच्चों भाषा से जुड़ी समस्याएं नजर आ रहीं हैं। डॉक्टर्स की मानें तो यह बीमारी दो साल की उम्र से ऑटिज्म के लक्षण बच्चों में नजर आने लगते हैं ऐसे में बिना देर किए पैरेंट्स को उपचार में जुट जाना चाहिए।

वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे: समय रहते बच्चों में नजर आने वाले लक्षणों की पहचान जरूरी

बच्चों को भरपूर समय देने की जरूरत

ऑटिज्म वैसे तो जन्मजात होती है, लेकिन वर्तमान समय में मोबाइल ऑटिज्म बच्चों को पैरेंट्स सपोर्ट के बिना मिल रहा है। डॉ. पायल केसवानी के अनुसार समय रहते बीमारी के लक्षणों को समझकर ट्रीटमेंट करवाने से काफी हद तक इसका इलाज संभव हो जाता है। वर्तमान में पैरेंट्स वर्किंग हैं और बच्चों को अच्छी तरह से समय नहीं दे पाते। पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चों की चीजों को नोटिस करें और देखें कि उन्हें क्या परेशानी हो रही है।

आईक्यू होता है कम

पीड़ित बच्चों का सामान्य बच्चों से दिमाग स्लो होता है विशेषज्ञों की मानें तो यह समस्या जेनेटिक है। परिवार में किसी को इस तरह की समस्या या इससे रिलेटेड प्रॉब्लम होने से बीमारी बच्चों को हो सकती है। अटेंशन डिसॉर्डर एवं हाइपरएक्टिव भी इसी श्रेणी में है। ऑटिज्म मेंटल इलनेस है, जो कि जन्म से होती है। इसमें बच्चों का आईक्यू कम होता है। ऐसे बच्चों का दिमाग कुछ धीमा चलता है तो कुछ चीजों में साधारण बच्चों की तुलना में तेज भी चलने लगता है। यह बीमारी जन्मजात होती है, लेकिन हमारे आसपास का वातावरण इसे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।

इन लक्षणों को ना करें अनदेखा

●आई कॉन्टेक्ट ना कर पाना
●चीजों की शेयरिंग ना करना
●एक ही खिलौने से खेलना
●बातों की प्रतिक्रिया ना देना
●फिजिकल कॉन्टेक्ट ना करना
●भावनाओं को व्यक्त ना कर पाना
●एक ही शब्द को बार-बार दोहराना

क्या करें पैरेंट्स

●बच्चों से लगातार बातें करें
●मोबाइल और स्क्रीन टाइम आधे घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए
●उन्हें घर में सकारात्मक माहौल दें
●बच्चों के साथ समय बिताएं
●समय रहने काउंसलिंग करवाएं और बिहेवियर थैरेपी दिलवाएं