
इन चार मासूम चेहरों पर मत जाइए, जानेंगे इनका कमाल तो रह जाएंगे दंग
जबलपुर। नियति ने भले ही उनमें कुछ कमी दी, लेकिन उन्हें बाकियों से अधिक हौसला दिया है। वह सुनने, बोलने, चलने, देखने में कमजोर हैं, लेकिन उनके इरादे पक्के हैं, हौसले बुलंद हैं। बात हो रही है शहर के ऐसे दिव्यांगों की, जिन्होंने अपनी निशक्तता को कमजोरी नहीं बनने दिया, बल्कि अपनी इस कमजोरी को ताकत बनाकर वह हमेशा आगे बढ़ते रहे। विश्व विकलांग दिवस के मौके पर आइए मिलते हैं ऐसे ही लोगों से, जिन्होंने जिंदगी में हार नहीं मानी। असंभव को संभव कर दिखाया और आम लोगों के लिए मिसाल बने। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया कि कि हौसले के बूते आप बुलंदी छू सकते हैं। इन्हीं हौसलों की कहानी और मिसाल हैं दिव्यांगजन, जो जिंदादिली से अपनी जिंदगी जी रहे हैं।
चाहता था कि कोई दूसरा 'गिरीश' न बने
बाल भवन संचालक गिरीश बिल्लोरे बैसाखी के सहारे चलते हैं। उनकी मां ने जो आत्म विश्वास जगाया, उसके बूते वे आम इंसान की ही तरह जिंदादिली से जिंदगी जी रहे हैं। पोलियो होने के कारण वे दिव्यांग हुए। जब उन्होंने होश संभाला, तब ही यह सोच लिया था कि ऑफिसर बनकर किसी एेसे विभाग में काम करना है, जहां वह बच्चों में होने वाली इस समस्या को दूर सकें। वह चाहते थे कि कोई दूसरा गिरीश न बने। उन्होंने कड़ी मेहनत की और ऑफिसर बने। कई अन्य मौके भी मिले, लेकिन उन्होंने बाल एवं महिला विकास विभाग चुना। उनका कहना है कि यदि कोई बच्चा दिव्यांग होता है तो सबसे बड़ी जिम्मेदारी पैरेंट्स की होती है। वे उनमें आत्मविश्वास जगाए।
सुन, बोल नहीं सकते, मरीजों का दर्द समझते
अस्पताल में काम करने वाले उमर फारुख। वह मरीजों की मलहम पट्टी करते हैं। वह बोल, सुन नहीं सकते, फिर भी मरीजों की देखरेख करते हैं। शहर के एक निजी हॉस्पिटल में काम कर रहे उमर बचपन से इस कमजोरी के साथ हैं, लेकिन उन्होंने इस अपने काम में आड़े नहीं दिया। आम इंसान की ही तरह मरीजों की सेवा का काम कर रहे हैं, वहां काम करने वाले कई लोग उनका सहयोग भी करते हैं जिससे वह कम्युनिकेशन पूरा कर पाते हैं। ट्रांसलेटर की मदद से फारुख ने बताया कि पहले कई लोग यह कहते थे कि यह तो कुछ भी नहीं कर पाएगा, लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया है कि दृढ़ विश्वास से ऊपर कुछ नहीं।
हाथ नहीं, फिर भी गजब का नृत्य
स्तुति पाराशर जन्म से ही हाथ से दिव्यांग हैं। एक कमजोरी होने के बाद भी वह आम इंसान की तरह जिंदगी जी रही हैं। पढ़ाई में अच्छी होने के साथ-साथ स्तुति नृत्य में माहिर हैं। बाल भवन में नृत्य की शिक्षा ले रही हैं और खूबसूरत नृत्य करती हैं। उनकी मां स्मिता ने बताया कि शुरू से ही उन्होंने बेटी को आत्मविश्वासी बनाया। एक हाथ न होने का गम कभी बेटी को महसूस नहीं होने दिया। वे बताती हैं कि निशक्तता के बाद भी स्तुति सारा काम खुद करती हैं और नृत्य में माहिर हैं।
दिव्यांगता आड़े नहीं आई
जब रेहाना खान पांच साल की थी, तब पोलियो हो गया था। हर जगह इलाज करवाया, पर डॉक्टर ने कहा कि उम्र भर पैर ऐसा ही रहेगा। उस वक्त छोटी थी तो कुछ समझ नहीं आया, लेकिन जैसे-जैसे बड़ी हुई तो लगा कि इस कमजोरी के चलते क्या वह उम्र भर सुकून से जी पाएंगी? कई लोगों ने मोरल डाउन भी किया, लेकिन ,लेकिन उन्होंने सोचा था कि वह कुछ कर के दिखाएंगे। उन्होंने नौकरी के लिए पढ़ाई पूरी की। मेहनत की और इसका फल भी मिला। होम साइंस कॉलेज में लाइब्रेरी में नौकरी करती हैं। उनका कहना है कि जीवन में असंभव कुछ भी नहीं है, केवल आपको दृढ़ निश्चय करना चाहिए।
Published on:
03 Dec 2017 01:05 pm
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