
चापड़ा चटनी का अनोखा स्वाद (Photo source- Patrika)
Chhattisgarh Chapra Chutney: छत्तीसगढ़ की पारंपरिक रसोई में कई ऐसे व्यंजन हैं, जो अपनी अनूठी तैयारी और देसी स्वाद के लिए प्रसिद्ध हैं। चापड़ा चटनी इनमें से एक बेहद खास व्यंजन है। लाल चींटियों और उनके अंडों से बनने वाली यह चटनी न केवल स्वाद में तीखी और खट्टी होती है, बल्कि इसके पोषक तत्व और औषधीय गुण इसे खास बनाते हैं। मुख्य रूप से बस्तर, दंतेवाड़ा और कांकेर के आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित यह चटनी अब अपनी अनोखी पहचान के कारण देश-विदेश के फूड लवर्स के बीच लोकप्रिय हो रही है।
यह चटनी बस्तर, दंतेवाड़ा, कांकेर और आसपास के आदिवासी अंचलों की पारंपरिक रसोई का हिस्सा है। स्थानीय जनजातियों का मानना है कि लाल चींटियां न केवल स्वाद में खटास लाती हैं, बल्कि ये औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। पुराने समय से ही ग्रामीण और आदिवासी लोग इसे अपनी थाली का खास हिस्सा मानते आए हैं।
इस चटनी का स्वाद तीखा, चटपटा और हल्का खट्टा होता है, जो सामान्य चटनियों से बिल्कुल अलग है। इसे महुआ की रोटी, बाजरे की रोटी या चावल के साथ परोसा जाता है। (Chhattisgarh Chapra Chutney) आज यह चटनी सिर्फ आदिवासी इलाकों में ही नहीं, बल्कि देश-विदेश में भी अपनी पहचान बना रही है।
लाल चींटियों में प्रोटीन, कैल्शियम और जिंक की भरपूर मात्रा पाई जाती है। कहा जाता है कि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करती है। आदिवासी लोग इसे सर्दी-खांसी और शरीर की थकान दूर करने का प्राकृतिक उपाय भी मानते हैं।
लाल चींटियों से बनी खास चटनी – चापड़ा चटनी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे लाल चींटियों और उनके अंडों से तैयार किया जाता है, जिससे इसका स्वाद बेहद अनोखा और खट्टापन लिए होता है।
अनोखा स्वाद और झनझनाहट – इसमें हरी मिर्च, लहसुन और अन्य मसालों के साथ लाल चींटियों का प्राकृतिक खट्टा स्वाद जुड़कर इसे तीखा और चटपटा बनाता है।
औषधीय और पोषक गुण – लाल चींटियों में प्रोटीन, जिंक और कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यह चटनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और सर्दी-खांसी दूर करने में मददगार मानी जाती है।
आदिवासी परंपरा का हिस्सा – यह चटनी बस्तर और आसपास के आदिवासी इलाकों में सदियों से बनाई जा रही है। आदिवासी इसे अपने भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।
देश-विदेश में लोकप्रियता – अपने अनोखे स्वाद और स्वास्थ्य लाभ के कारण चापड़ा चटनी अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित हो रही है।
बस्तर क्षेत्र – चापड़ा चटनी का सबसे ज्यादा प्रचलन बस्तर जिले में है। यहां के आदिवासी समुदाय इसे रोजमर्रा के भोजन में शामिल करते हैं।
कांकेर और दंतेवाड़ा – इन जिलों के गांवों और हाट-बाजारों में चापड़ा चटनी बड़ी आसानी से मिल जाती है। स्थानीय मेलों और उत्सवों में यह विशेष रूप से बनाई जाती है।
कोंडागांव और नारायणपुर – इन आदिवासी बहुल इलाकों में भी चापड़ा चटनी भोजन का अहम हिस्सा है। कई ग्रामीण रेस्टोरेंट और धाबों में यह चटनी परोसी जाती है।
जगदलपुर और आसपास के बाजार – जगदलपुर के हाट बाजार में यह चटनी बिकती है, जहां लोग इसे महुआ रोटी या चावल के साथ खाते हैं।
विशेष आयोजनों में – बस्तर दशहरा, मड़ई और अन्य स्थानीय त्योहारों पर यह चटनी पारंपरिक भोजन का हिस्सा बनती है।
Updated on:
22 Jul 2025 04:46 pm
Published on:
22 Jul 2025 04:45 pm
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