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Bastar Dussehra: दुनिया का ऐसा दहशरा मेला…जहां राम-रावण का जिक्र ही नहीं, कांटो के झूले पर सवार होकर देवी पर्व मनाने की अनुमति देती है

Bastar Dussehra: बस्तर में इस दिन सिर्फ मां का स्वागत और आराधना होती है। मां रथारुढ़ होकर भक्तों को दर्शन देने के लिए निकलती हैं। यहां न रावण का पुतला जलाया जाता है और न ही रामलीला होती है।

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Bastar Dussehra: दुनिया का ऐसा दहशरा मेला...जहां राम-रावण का जिक्र ही नहीं, कांटो के झूले पर सवार होकर देवी पर्व मनाने की अनुमति देती है

बस्तर दशहरा (Photo Patrika)

Bastar Dussehra: छत्तीसगढ़ के वनांचल बस्तर में दशहरा का उत्सव राम और रावण के बिना ही पूरा हो जाता है। जहां देशभर में दशहरा को भगवान राम की जीत का उत्सव माना जाता है तो वहीं बस्तर में इस दिन सिर्फ मां का स्वागत और आराधना होती है। मां रथारुढ़ होकर भक्तों को दर्शन देने के लिए निकलती हैं। यहां न रावण का पुतला जलाया जाता है और न ही रामलीला होती है। यहां बेहद अनूठे अंदाज में दशहरा मनाया जाता है जो कि 75 दिन तक चलता है।

इसमें कई रस्में होती हैं और 13 दिन तक दंतेश्वरी माता समेत अनेक देवी देवताओं की पूजा की जाती है।बस्तर दशहरा की शुरुआत हरेली अमावस्या से होती है। इसमें सभी वर्ग, समुदाय और जाति-जनजातियों के लोग हिस्सा लेते हैं। इस पर्व में राम-रावण युद्ध की नहीं बल्कि बस्तर की मां दंतेश्वरी माता के प्रति अगाध श्रद्धा झलकती है।

75 दिन का दशहरा 12 प्रमुख रस्मों से समृद्ध

इस पर्व की शुरुआत हरेली अमावस्या को माचकोट जंगल से लाई गई लकड़ी पर पाटजात्रा रस्म पूरी करने के साथ होती है। इसके बाद जंगलों से लकड़ी लाकर पारंपरिक औजारों विशाल रथ निर्माण करना होता है।

काछनगादी की पूजा की परम्परा-

इस पर्व में काछनगादी की पूजा का विशेष प्रावधान है। रथ निर्माण के बाद पितृमोक्ष अमावस्या के दिन ही काछनगादी पूजा संपन्न की जाती है। इस पूजा में मिरगान जाति की बालिका को काछनदेवी की सवारी कराई जाती है। ये बालिका बेल के कांटों से तैयार झूले पर बैठकर रथ परिचालन व पर्व को सुचारु रूप से शुरू करने की अनुमति देती है।

इस बार खास… 59 साल बाद राजपरिवार को निमंत्रण

बस्तर दशहरा में हर साल दंतेवाड़ा की माता मावली को जगदलपुर आने का निमंत्रण बस्तर राजपरिवार देता है। लेकिन 59 साल के बाद बस्तर दशहरा में मौजूदा राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव और उनकी धर्मपत्नी माता को दशहरा में शामिल होने का निमंत्रण देंगे। दशहरा के दिन दंतेवाड़ा से मां का छत्र जगदलपुर आता है।

'दसरा-पसरा' नया प्रयोग, जहां दशहरा की झलक…

2025 के आयोजन में कुछ नए प्रयास किए जा रहे हैं। लकड़ी के रथ निर्माण के लिए हर साल सैकड़ों पेड़ काटे जाते हैं। इस बार पेड़ कटाई के नुकसान की भरपाई के लिए बड़े पैमाने पर पुनःरोपण अभियान शुरू किया है। हर वर्ष लगभग 300 पौधों को लगाने की योजना बनाई गई है।‘बस्तर दशहरा’ की झलक दिखाने के लिए जगदलपुर में 'दसरा-पसरा' म्यूजियम का निर्माण किया गया है।

दस लाख से अधिक लोगों का जुड़ाव

गतवर्ष बस्तर दशहरा में लगभग 8 लाख से अधिक श्रद्धालु और पर्यटक शामिल हुए थे। प्रशासन का अनुमान है कि इस वर्ष यह संख्या 10 लाख को पार कर जाएगी।इनमें छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों के अलावा महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और दिल्ली से भी बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचेंगे।