विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान एवं जनजातीय अध्ययन शाला ने दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, कांकेर, जशपुर व कोरिया जिला में लगभग सात हजार सैंपल का सर्वे लेकर सरकार की चिंता को सही पाया है। इसमें पाया गया कि जनजातीय जनसंख्या वृद्धि 2001-2011 में 2.19 फीसदी की कमी आई है। शोध के निष्कर्ष से विभाग को अवगत करा दिया गया है।
Tribal Population in CG: नक्सलवाद व सुरक्षाबल भी फैक्टर्स
बस्तर संभाग के सभी जिले चार दशक से नक्सल प्रभावित रहे हैं। इन जिले में नक्सल व सुरक्षाबलों की सरगर्मी भी आदिवासियों की जनसंख्या के वास्तविक आंकड़ों को प्रभावित करने वाले कारक बने हैं। इन दोनों की सक्रियता लाखों आदिवासियों के पलायन का सबब बनी हैं। अपुष्ट आंकड़ों के मुताबिक सुकमा के नक्सलवाद प्रभावित इलाकों से 50 हजार लोग सीमावर्ती तेलंगाना व आंध्रप्रदेश आकर बस गए हैं। इनकी वापसी को लेकर समय समय पर मुहिम भी चलाई गई। पर वे वापस नहीं लौट रहे हैं।
जनसांख्यिकीय आंकड़े भी अप्राप्त
- विवि के शोध से यह जाहिर हुआ है कि 2001- से 2011 तक 1,57,676 जनजातीय समुदायों की जनसंख्या दंतेवाड़ा में अप्राप्त है। 2001 में दंतेवाड़ा की जनसंख्या 1991 की तुलना में चार गुना अधिक थी। परंतु जनजातीय जनसंख्या वृद्धि 2001-2011 में 2.19 दर की कमी आई है। जाहिर है कि इसमें दूरदराज के इलाकों को छोड़ दिया गया था।
- जनजातीय जनसंख्या में वृद्धि दर में सर्वाधिक कमी नारायणपुर, सुकमा व कोरिया में पाई गई है। जबकि प्राकृतिक वृद्धि दर (3.4) नारायणपुर (15) व जशपुर में सर्वाधिक कम आंकी गई है। जो कि जन्मदर की कमी से ओर इशारा करते हैं।
- यही हाल मातृ मृत्युदर में है जिसमें सुकमा, नारायणपुर व बीजापुर आगे है। नारायणपुर में मृत शिशुओं का जन्म भी चिंता का विषय बन गया है।
लिंगानुपात हो रहा प्रभावित
दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, कांकेर, कोरिया व जशपुर में जन्म की तुलना में मृत्युदर अधिक। शोध से पता चला कि वृद्धि दर में कमी आई है। जनजातीय समाज में जन्म के समय व 6 साल से कम उम्र के बच्चों में लिंगानुपात दर में कमी पाई है।
सर्वे के बारे वह सब जो आपको जानना चाहिए
- 2011 की जनगणना के मुताबिक जनजातियों का सर्वाधिक प्रतिशत दंतेवाड़ा व बस्तर में है।
- राज्य में 42 अनुसूचित जनजातियां हैं, जो 161 उपजातियों में विभाजित हैं।
- शोध में पता चला है कि जनजातीय जनसंख्या वृद्धि 2001- 2011 में 2.19 दर की कमी आई है।
- जशपुर ही ऐसा अनुसूचित क्षेत्र है जहां 2001- 2011 के मध्य जनसंख्या में 1.37 दर से वृद्धि हुई है।
- दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, कोरिया व जशपुर में जन्म की तुलना में मृत्यु दर अधिक है।
- जनजातीय समाज में जन्म के समय व 6 साल से कम उम्र के बच्चों में लिंगानुपात दर में कमी पाई गई है
- बस्तर संभाग में मातृ मृत्युदर राज्य में सर्वाधिक है।
- आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग ने पहल पर शोध की।
- जनजातीय जनसंख्या वृद्धि 2001-2011 में 2.19 प्रतिशत की कमी।
- शोध के परिणाम में यह भी पता चला कि जन्मदर के साथ ही मृत्युदर भी बढ़ी।
- नक्सल हिंसा का खौफ व अन्य राज्य की ओर पलायन भी मुख्य फैक्टर है।
शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय के मुख्य अन्वेषक डॉ. स्वपन कोले ने पत्रिका को यह जानकारी दी कि अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या वृद्धि दर में कमी को प्रभावित करने वाले कारक पर शोध किया गया था। शोध से पता चला है कि जनजातीय इलाकों में इनकी जनसंख्या दर में कमी आई है। शोध के आंकलन से विभाग को अवगत करा दिया गया है।
असुरक्षित प्रसव, प्राकृतिक आपदा व बीमारी से मौतें
Tribal Population in CG: बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक जनजातियों का सर्वाधिक प्रतिशत दंतेवाड़ा व बस्तर जिला में है। आदिवासी समुदाय की जनसंख्या घटने के कारणों में असुरक्षित प्रसव, नवजात की मृत्युदर में बढ़ोतरी व कम आयु में मृत्यु ज्यादा प्रभावी हैं। 2013 से 2016 के बीच दंतेवाड़ा में नवजात शिशुओं की मृत्यु की संख्या प्रति हजार में तीन सौ थी। जबकि इसी अंतराल में बीजापुर में 327 तक पहुंची थी। प्राकृतिक आपदाओं की वजह से भी जनसंख्या में कमी आंकी गई है।