
- जितेन्द्र सिंह शेखावत
जयपुर। सम्राट अकबर से मित्रता के बाद आमेर रियासत के बुरे दिन अच्छे दिनों में बदलने लगे थे। फिर राजा भारमल व मान सिंह प्रथम का घोर शत्रु अजमेर का सूबेदार मिर्जा शरफुद्दीन हुसैन का मिजाज नरम पड़ गया और वह भारमल की खुशामद करने लगा। अजमेर का शरफुद्दीन आमेर राज्य को हड़पने का सपना संजोये बैठा था। फिर आमेर राज्य में अकबर का आगमन होने से मारवाड़ के मालदेव ने भी ढूंढाड़ के छीने हुए परगने वापस सौंप दिए। उस समय नहाण के गोलमाडु मीणों ने भी कछवाहों की नींद ***** कर रखी थी। नहाण के वीर मीणा शासकों के लिए यह कहावत प्रसिद्ध हुई।...बावन कोट छप्पन दरवाजा, मीणा मरद नहाण का राजा।
आमेर नरेश ने नमाज अदा करने के लिहाज से बनावाई मस्जिद
रणथम्भौर दुर्ग विजय अभियान के अलावा अजमेर के ख्वाजा मोईनुदद्ीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगने के लिए निकला अकबर रास्ते में आमेर में रुका था। इतिहासकार राघवेन्द्र सिंह मनोहर के मुताबिक कनक वृंदावन के पास व हाडीपुरा आमेर में बनी कोस मीनार अकबर के आमेर आगमन की गवाह है। सन् 1569 हिजरी सन् 977 में अकबर के आमेर आने पर आमेर नरेश भारमल ने नमाज अदा करने के लिहाज से यहां अकबरी जामा मस्जिद बनवाई। आमेर में ठहरे बादशाह ने मस्जिद में नमाज अदा की।
आमेर रियासत में दीपकों की रोशनी से करवाई थी सजावट
औरंगजेब शासन के अंतिम दिनों में अकबरी मस्जिद का विस्तार हुआ। वंश भास्कर में सूर्यमल्ल मीसण ने लिखा कि अकबर के आमेर आने की खुशी में भारमल ने आमेर रियासत में दीपकों की रोशनी से सजावट करवाई। वंश भास्कर में लिखा है कि अकबर के आमेर आने पर जहां जश्र का माहौल था, वहीं जनाना महलों की हाड़ी रानी ने विरोध में विषाक्त पदार्थ खाकर मरने का प्रयास किया, लेकिन समय पर राज वैद्य ने उपचार कर उन्हें स्वस्थ कर दिया। हाड़ी रानी ने मरने के लिए कटार भी छुपा रखी थी। फिर वह महलों को छोड़ आमेर स्थित हाड़ीपुरा की एक हवेली में रहने लगी। इसी हवेली के कारण आमेर का हाड़ीपुरा मोहल्ला आज भी प्रसिद्ध है।
Published on:
11 Apr 2018 04:30 pm
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