
AI Glasses:जयपुर. अब जमाना एआई का है। यहां तकनीक ही काम करेगी। नीदरलैंड्स के व्यस्त रास्तों पर एक साधारण सा चश्मा पहनकर टहलते हुए, जर्नलिस्ट अलेक्जेंडर क्लोपिंग ने दुनिया को हिला दिया। दिसंबर 2025 में एक टीवी शो में उन्होंने एआई-स्मार्ट ग्लासेस का डेमो दिया, जहां बस एक नजर में राहगीरों के नाम, नौकरी, सोशल मीडिया प्रोफाइल सब स्क्रीन पर आ गए। यह वीडियो एक्स पर वायरल हो गया, लाखों व्यूज बटोरते हुए, और यूरोप में प्राइवेसी का हल्ला मच गया। क्लोपिंग का मकसद था लोगों को डराना और जागरूक करना। एआई ग्लासेज की मदद से यह संभव हो रहा है।
यह तकनीक कोई जासूसी फिल्म का सीन नहीं, बल्कि हकीकत है। इसके लिए आपको एक चश्मा पहनना होगा। चश्मे में छिपा कैमरा चेहरे को कैप्चर करता है, फिर एआई टूल्स जैसे पिमआईज इंटरनेट पर पब्लिक फोटोज से मैच ढूंढते हैं। उसके बाद लार्ज लैंग्वेज मॉड्यूल जैसे चैट जीपीटी, लिंकडि या फेसबुक से डिटेल्स खींच लेते हैं। इसमें कोई गोपनीय डेटाबेस नहीं, सिर्फ खुला डेटा होता है। लेकिन यही डरावना है—बिना इजाजत सर्विलांस।
क्लोपिंग ने मेटा जैसे स्मार्ट ग्लासेस पहने, जो ब्लूटूथ से फोन से जुड़ते हैं। कैमरा वीडियो स्ट्रीम करता है, एआई चेहरा डिटेक्ट कर तुरंत सर्च करता है। सेकंडों में पॉप-अप मिल जाता है और फिर आपकी पहचान।
विशेषज्ञ कहते हैं रियल-टाइम में गलतियां हो सकती हैं, जैसे गलत पहचान। ये १०० प्रतिशत सही नहीं होता है।
अंधे लोग इन विजन ग्लासेस से माहौल समझ सकते हैं, या टूरिस्ट लैंडमार्क की कहानी। सुरक्षा में मदद मिल सकती है।
हर पहनने वाला अब 'जासूस' होगा। वह किसी भी व्यक्ति की पहचान उजागर कर सकता है। बिना सहमति के भी आप पर कोई निगरानी रख सकता है। डेटा चोरी का रिस्क बढ़ेगा।
यह सब प्राइवेसी कानून पर सीधा हमला है। एआई चश्मे प्राइवेसी को खत्म कर देंगे। मिसआइडेंटिफिकेशन से झूठे आरोप लग सकते हैं। लोग बाहर निकलने में भी डरने लगेंगे। अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में आ जाएगी। मेटा और अलीबाबा जैसे ब्रांड्स 2027 तक ऐसे ग्लासेस ला रहे हैं, लेकिन रेगुलेटर्स सख्ती चाहते हैं।
Updated on:
12 Dec 2025 12:51 pm
Published on:
12 Dec 2025 12:45 pm
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