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आचार्य धर्मेंद्र का निधन, कभी ‘बेटा-बूटी’ की पैरवी तो कभी अंग्रेजी भाषा का किया था विरोध

1966 के गोरक्षा आंदोलन और श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले 80 वर्षीय आचार्य धर्मेंद्र का निधन हो गया। सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा । आचार्य धर्मेंद्र का जीवन सादा ही रहा लेकिन अपने सख्त और अटल सोच की वजह से वो कई मामलों में मुखर रहे। देशा को जोड़े रखने के लिए उनका नाम कई विवादों में भी रहा।

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1966 के गोरक्षा आंदोलन और श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले 80 वर्षीय आचार्य धर्मेंद्र का निधन हो गया। सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा । आचार्य धर्मेंद्र का जीवन सादा ही रहा लेकिन अपने सख्त और अटल सोच की वजह से वो कई मामलों में मुखर रहे। देशा को जोड़े रखने के लिए उनका नाम कई विवादों में भी रहा। आचार्य धर्मेंद्र संविधान में संशोधन करने में के पक्ष में थे क्योकि उनका मानना था कि प्रचंड बहुमत से सरकार बनी है भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही गो हत्या बंदी, धारा 370 समाप्त और वंदेमातरम को राष्ट्रगान घोषित किया जाना चाहिए उनकी प्रमुख मांगों में शामिल रहा।

'बेटा-बूटी' के पक्ष में थे आचार्य
पुत्रजीवक दवा को लेकर बाबा रामदेव का बचाव करने उतरे आचार्य धर्मेंद्र जब मीडिया से मुखातिब हुए तो उन्होंने ऐसे बातें कहीं जिससे ऐसा लगा मानो धर्मगुरु का लबादा उन्होंने कहीं छोड़ दिया था। आचार्य धर्मेंद्र ने कहा कि आयुर्वेद में कई दवा हैं जो बेटा पैदा करती हैं। अगर कोई ऐसी दवा है तो क्या गलत है। अगर बेटा पैदा नहीं होगा तो बच्चे कहां से पैदा होंगे। बाबा की दवा फैक्ट्री से निकली 30 रुपये की बेटा-बूटी ने देश भर में बवाल मचा रखा है। कोई बाबा को इसके लिए कोस रहा है तो कोई समर्थन में है। लेकिन आचार्य धर्मेंद्र ने बाबा के समर्थन में उतरने के साथ ही पूरी बहस को एक नई दिशा में मोड़ दिया है।

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आचार्य धर्मेंद्र 'बेटा-बूटी' का बचाव करते हुए बेटा होने का बचाव भी कर जाते हैं। ये सारा विवाद जेडीयू के केसी त्यागी के संसद में सवाल उठाने के बाद शुरु हुआ। केसी त्यागी ने बाकायदा राज्यसभा में रामदेव की पुत्र-जीवक दवा का पैकेट लहराकर ये मुद्दा उठाया।

गौरक्षा के लिए 52 दिन का अनशन रखा और राम जन्मभूमि आंदोलन का चेहरा रहे आचार्य धर्मेंद्र


आचार्य धर्मेंद ने अप्रैल 1984 पहली धर्म संसद में राम जन्मभूमि के दरावजों का ताला खुलवानवे के लिए जन-जागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव रखा जो पारित भी हुआ. उसी साल सीतामढ़ी से लेकर दिल्ली में रामजानकी यात्रा निकाली गई. इस यात्रा आचार्य धर्मेंद्र का अहम योगदान रहा.

अंग्रेजी भाषा का किया था विरोध


आचार्य धर्मेंद्र के अनुसार अंग्रेजी को हम कंधों पर ढो रहे हैं, वर्तमान पीढ़ी अंग्रेजी पर ही जी रही है। उन्हें देश की परंपरा, सभ्यता का ज्ञान तक नहीं है। पढ़ाई में भी साहित्यकार, कवियों और स्वतंत्रता दिलाने के लिए संघर्ष करने वालों को ही गायब कर दिया गया है।