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राजस्थान के ट्रक ड्राइवर बद्रीलाल चौधरी का संघर्ष रंग लाया, बेटे ने रोशन किया देश और परिवार का नाम

धावक धर्मवीर चौधरी ने सात साल की मेहनत के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए मेडल जीतकर नाम रोशन किया। अब उसका सपना है कि वह ओलिंपिक में भारत के लिए मेडल जीते।

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Dharamveer Chaudhary from Hadi village Tonk

Photo- Patrika

जयपुर। अक्सर पर्दे के पीछे रहकर पिता हर मुश्किल का सामना करते हैं। ताकि उनके बच्चे ऊंचाइयों को छू सके। सीमित संसाधनों के बावजूद अपने बच्चों के सपनों को पंख देते हैं। पिता अपने बच्चों के लिए खुद को खपा देते हैं। उन्हें हर चुनौती का सामना करने का साहस देते हैं और उनकी सफलता में अपनी सबसे बड़ी खुशी पाते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है राजस्थान के टोंक जिले के हाडी गांव निवासी भारतीय सेना में हवलदार धर्मवीर चौधरी और उनके पिता ट्रक चालक बद्रीलाल चौधरी की।

मेडल जीतकर देश और अपने परिवार का नाम किया रोशन

दक्षिण कोरिया के गुमी में 31 मई को संपन्न हुई 26वीं एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में, धर्मवीर चौधरी ने भारत की 400 मीटर रिले टीम के साथ सिल्वर मेडल जीतकर देश और अपने परिवार का नाम रोशन किया है। धर्मवीर ने अब तक 8 बार स्टेट मेडल, 5 बार नेशनल मेडल, एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल, ताइवान में 4 गुणा 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता है।

पिता के संघर्ष से मिली बेटे को उड़ान

धर्मवीर के पिता बद्रीलाल चौधरी एक ट्रक ड्राइवर हैं। शुरुआत में वह बजरी परिवहन को लेकर चलने वाले ट्रक चलाते थे लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद उन्होंने गांव के पास ही स्थित एक कांट्रेक्टर कंपनी में ट्रक चलाने का काम करने लगे। उन्होंने अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए न केवल दिन-रात मेहनत की, बल्कि हर आर्थिक बाधा को भी पार किया।

जब परिवार की आर्थिक स्थिति आड़े आने लगी, तो उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने साहूकारों से ब्याज पर पैसे उधार लिए, ट्रक के पहियों को दौड़ाते रखा ताकि धर्मवीर को अच्छी ट्रेनिंग, पौष्टिक आहार और खेल के लिए ज़रूरी सुविधाएं मिल सकें। वे जानते थे कि उनके बेटे में प्रतिभा है और उसे सिर्फ एक अवसर की ज़रूरत है।

उनके पिता का यह संघर्ष ही था जिसने धर्मवीर को अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहने की शक्ति दी। हर बार जब धर्मवीर ट्रैक पर दौड़ते थे, तो उन्हें अपने पिता का पसीना, उनका त्याग और उनकी उम्मीदें याद आती थीं। यह सिल्वर मेडल केवल एक पदक नहीं, बल्कि पिता के अनमोल बलिदान का जीता-जागता प्रमाण है।

बचपन से ही आर्मी में जाने का था सपना

धावक धर्मवीर चौधरी ने सात साल की मेहनत के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए मेडल जीतकर नाम रोशन किया। अब उसका सपना है कि वह ओलिंपिक में भारत के लिए मेडल जीते। इसके लिए वह लगातार अभ्यास कर रहा है। हालांकि वो शुरुआत में फुटबाल में रुचि रखता था। पिता बद्रीलाल चौधरी ने कहा कि ऐसा खेल चुनो जिसमें आत्मनिर्भर बन सको। जो भी करो, अपने दम पर करो।

पिता की बातों ने धर्मवीर को एथलेटिक्स की ओर मोड़ा। बचपन से ही उसका सपना था कि वो आर्मी में जाए। भर्ती की तैयारी के लिए दौड़ना शुरू किया। साथ ही अपने पिता के कहे अनुसार ऐसा खेल एथलेटिक्स के रुप में चुना जिसमें वो स्वयं के दम पर कुछ कर सके। बस उसने दौड़ का अभ्यास भी शुरू कर दिया।

पिता ने हर जगह भरपूर साथ दिया

2019 से उसने जिले के उबड़-खाबड़ मैदानों पर दौड़ना शुरू किया। आर्मी भर्ती रैली में मेडिकल में रह गया। कई बार प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। एक साथी के कहने पर जिला स्तरीय प्रतियोगिता में 100 और 400 मीटर दौड़ में भाग लिया। 100 मीटर में पहला और 400 मीटर में दूसरा स्थान पाया।

उसके बाद जब वो राज्य स्तर पर खेलने गया तो वहां टॉक के खिलाड़ियों को कमजोर माना जाता था। यह बात उसे चुभ गई। तभी से उसने जिले का नाम रोशन करने की ठान ली। पिता ट्रक ड्राइवर तथा घर की आर्थिक स्थिति भी कुछ ठीक नहीं। फिर भी नौकरी की तलाश छोड़ एथलेटिक्स में देश के लिए मेडल लाने का सपना देखा। इसमें पिता ने भरपूर साथ दिया।

मां का पैर टूटा, पिता ने ट्रक चलाना छोड़ा

धावक धर्मवीर चौधरी ने बताया कि इस दौरान उसकी मां का पैर टूट गया। ऐसे में घर के सारे कामों को करने के लिए उसे घर बुलाने की बजाए स्वयं ने ट्रक ड्राइवर की नौकरी छोड़ दी। साथ ही हर माह करीब 30 हजार से अधिक का खर्च मेरे खेलने के ऊपर होता था, उसकी उन्होंने कभी मुझे परवाह नहीं करने दी। खेलों में जीते मेडल तथा नेशनल पर जीते सिल्वर मेडल के बाद वर्ष 2024 में आर्मी से उसे हवलदार पद पर नौकरी मिल गई। साथ ही खेलों में अभी वह भाग ले रहा है।