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काश! समय पर मिल जाती ऑक्सीजन तो उजडऩे से बच जाते अनेक परिवार

locationजयपुरPublished: Jul 23, 2021 02:22:08 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

केंद्र और राज्य के बीच कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की किल्लत से मौतों के मामले में राजनीति जारी है। वहीं वास्तविकता के धरातल पर दूसरी लहर के दौरान कई मौतें ऑक्सीजन की किल्लत के कारण हुई हैं।

Coronavirus tragedy cases in rajasthan

केंद्र और राज्य के बीच कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की किल्लत से मौतों के मामले में राजनीति जारी है। वहीं वास्तविकता के धरातल पर दूसरी लहर के दौरान कई मौतें ऑक्सीजन की किल्लत के कारण हुई हैं।

जयपुर। केंद्र और राज्य के बीच कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की किल्लत से मौतों के मामले में राजनीति जारी है। वहीं वास्तविकता के धरातल पर दूसरी लहर के दौरान कई मौतें ऑक्सीजन की किल्लत के कारण हुई हैं। राजस्थान पत्रिका ने पहली लहर के दौरान ऐसी कई मौतों को प्रमुखता से उजागर किया। वहीं अब भी कई ऐसे मौतें सामने आ रही हैं, जिनके परिजन आज भी दूसरी लहर के दौरान सामने आए ऑक्सीजन की किल्लत की भयावहता को याद कर सिहर उठते हैं।
दो बेटियों के सिर से उठा माता-पिता का साया
काश! समय पर ऑक्सीजन सिलेंडर का सहारा मिल जाता तो हंसते-खेलते परिवार की खुशियां नहीं उजड़ती। अजमेर के ब्यावर रोड सुंदर नगर निवासी एवं पेंटिंग का काम करने वाले मुकेश शर्मा (45), पत्नी मीनू कुमारी (40) की कोरोना संक्रमण के चलते ऑक्सीजन की कमी से मृत्यु हो गई थी। मृतक मुकेश के साले राजकुमार शर्मा ने बताया कि कोविड होने पर बहनोई मुकेश को अचानक सांस लेने में दिक्कत आने लगी। तत्काल जवाहर लाल नेहरू अस्पताल लेकर पहुंचे। लेकिन वहां ऑक्सीजन बेड खाली नहीं होने की बात कही गई। इस पर एक प्राइवेट अस्पताल लेकर गए लेकिन वहां पर भी ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं था। मुकेश की 28 अप्रेल को मौत हो गई। बाद में मीनू कुमारी को भी यही परेशानी हुई और 6 मई को मीनू की भी कोरोना से मौत हो गई। आठ दिन के अंतराल में परिवार के दो जनों की असामयिक मृत्यु से घर में मातम छा गया। इससे उनके साथ रह रही मीनू की मां इंदिरा देवी सदमे में आ गई और 11 मई को कार्डिक अटैक से उनकी मौत हो गई। पंद्रह दिन के अंतराल में परिवार में तीन जनों की मौत के बाद मुकेश और मीनू की दोनों पुत्रियों का हाल ये है कि रो-रो कर उनकी आंखों के आंसू भी सूख गए। दोनों बेटियों की जिंदगी संवारने, पढ़ाई पूरी करने और अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए सरकार की मदद का इंतजार है।
ऑक्सीजन की गुहार लगाते मौत से हार गई जिंदगी
एक मई को निवाई निवासी कोरोना संक्रमित एक महिला ने ऑक्सीजन न मिलने के कारण एसएमएस अस्पताल के गेट पर ही दम तोड़ दिया। मरने से पहले वह सुरक्षा कर्मियों व लोगों से ऑक्सीजन की गुहार लगाती रही। मृतक के परिजन ने बताया कि उसे इलाज के लिए जयपुर लाए थे। तीन अस्पतालों के चक्कर काटे लेकिन कहीं बेड नहीं मिला तो एसएमएस अस्पताल लाए। जहां उसका ऑक्सीजन लेवल गिरा और लेकिन ऑक्सीजन न मिल सकी। ऑक्सीजन की गुहार लगाते-लगाते उसने गेट के पास ही दम तोड़ दिया। इस मर्मांतक घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुआ।
40 अस्पतालों में नहीं मिली ऑक्सीजन और वेंटिलेटर, नहीं बची महिला
अलवर जिले के बानसूर निवासी 43 वर्षीय महिला को ऑक्सीजन की कमी की 12 मई की रात मौत हो गई। जयपुर और अलवर जिले के करीब 40 अस्पतालों में उसे वेंटिलेटर बेड नहीं मिला। अलवर सामान्य चिकित्सालय में वेंटिलेटर की गुहार लगाई तो चिकित्सकों ने जवाब दिया कि वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन की खपत अधिक होती है, इस कारण उपलब्ध नहीं हो पाएगा। महिला के बेटे सौरभ ने बताया कि 12 मई को उनकी मां जयपुर के निजी अस्पताल में भर्ती थी। वहां चिकित्सकों ने ऑक्सीजन की कमी के कारण वेंटिलेटर की अनुपलब्धता के चलते दूसरे अस्पताल में ले जाने के लिए कहा। वहां से जिंदगी और मौत का संघर्ष शुरू हुआ। अलवर और जयपुर के लगभग सभी अस्पतालों में संपर्क किया। जनप्रतिनिधियों को भी फोन किए। लेकिन एक भी वेंटिलेटर बेड उपलब्ध नहीं हो पाया।
एम्बुलेंस में खत्म हुई ऑक्सीजन, युवा इंजीनियर की बीच रास्ते मौत
अलवर शहर के 200 फीट रोड निवासी युवा इंजीनियर राहुल शर्मा की 22 मई को जयपुर ले जाते समय लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस में लगे ऑक्सीजन सिलेंडर की ऑक्सीजन खत्म होने के कारण मौत हो गई थी। राहुल कोरोना के चलते शहर के निजी अस्पताल में भर्ती था। उन दिनों शहर में ऑक्सीजन की किल्लत बनी हुई थी। निजी अस्पताल में एम्बुलेंस नहीं मिलने पर राजीव गांधी सामान्य चिकित्सालय की लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस से अस्पताल के स्टाफ के साथ जयपुर रवाना किया। रास्ते में दौसा के समीप पहुंचते ही सिलेंडर में ऑक्सीजन खत्म हो गई, जिससे राहुल की मौत हो गई। राहुल अपने परिवार में कमाने वाला इकलौता था। पत्नी और तीन साल की बेटी के अलावा माता-पिता और छोटा भाई भी राहुल पर आश्रित थे। अब बूढ़े पिता के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई है। आज भी परिवार जवान बेटे की मृत्यु के सदमे में डूबा हुआ है। तीन साल की बेटी को अभी तक यह पता नहीं कि उसके अब पिता इस दुनिया में नहीं हैं। उसने अंतिम बार अपने पिता को एम्बुलेंस में जाते देखा था। अब जब भी वह कोई एम्बुलेंस देखती है तो यह कहते हुए दौड़ पड़ती है कि पापा आ गए।

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