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राजस्थान में भगवान गणेश का अनूठा मंदिर, रोजाना प्रसाद के कटोरे में मिलता था 125 ग्राम सोना

राजधानी में भगवान गणेश का एक अनूठा मंदिर है। 16वीं शताब्दी में सूर्यवंश शैली में बना यह मंदिर 18 खंभों पर बना है।

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जयपुर। राजधानी में भगवान गणेश का एक अनूठा मंदिर है। 16वीं शताब्दी में सूर्यवंश शैली में बना यह मंदिर 18 खंभों पर बना है। यहां रियासत काल में अनुष्ठान के दौरान रोजाना प्रसाद के कटोरे में 125 ग्राम सोना मिलता था। सागर रोड, आमेर में सफेद आंकड़े की जड़ से तैयार भगवान गणेश की प्रतिमा की ख्याति पूरे प्रदेश में फैली है। असाध्य बीमारियों के इलाज के लिए लोग यहां पहुंचते हैं।

सफेद आक की प्रतिमा के नीचे पाषाण निर्मित भगवान गणेश की मूर्ति भी स्थापित है। पूर्वमुखी दोनों मूर्तियों में भगवान गणेश की सूंड बाईं ओर है। अत: इन्हें सूर्यमुखी गणेश के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन काल में मंदिर के स्थान पर बावड़ी थी। महाराजा मानसिंह ने उसके ऊपर 18 स्तम्भ बनवाए व उन पर मंदिर का निर्माण करा प्रतिमाएं स्थापित की। विवाह सहित अन्य शुभ कार्यों के लिए श्रद्धालु डाक-कोरियर से प्रथम पूज्य को निमंत्रण पत्र भेजते हैं।

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महंत ने बताया कि गणेश चतुर्थी पर मंदिर परिसर में मेला भरता है। साथ ही आमेर कुंडा स्थित गणेश मन्दिर से निकलने वाली शोभायात्रा का समापन आंकड़े वाले गणेश मंदिर पर होता है। उन्होंने बताया कि चौथी पीढ़ी मंदिर में सेवा-पूजा कर रही है। पूर्वजों के अनुसार राजा मानसिंह जब यहां अनुष्ठान करते थे, तब गणपति के समक्ष रोजाना 125 ग्राम सोना प्रसाद के कटोरे में मिलता था।

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नहीं कर पाए पहचान
महंत चन्द्रमोहन शर्मा ने बताया कि इस दुर्लभ प्रतिमा को तत्कालीन महाराजा मानसिंह प्रथम जयपुर की स्थापना के पहले हिसार से लाए थे। इसे मंगाने के लिए हिसार के राजा ने अपने घुड़सवारों को आमेर भेजा। महाराजा ने सफेद आक से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा के पास ही पाषाण की दूसरी मूर्ति रख दी। घुड़सवार असली प्रतिमा नहीं पहचान पाए और भगवान गणेश की बालस्वरूप दोनों मूर्तियां यहीं छोड़ गए। तभी से ढाई फीट की दोनों प्रतिमाएं बावड़ी पर स्थित हैं।

Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित है पत्रिका इस बारे में कोई पुष्टि नहीं करता है । इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।