
तूंगा के खतैपुरा में की जा रही टमाटर की खेती। फोटो पत्रिका
तूंगा (देवगांव)। बस्सी और तूंगा क्षेत्र की पहचान टमाटर अब किसानों के लिए उम्मीद नहीं, बल्कि निराशा का प्रतीक बन गया है। जो टमाटर कभी किसानों के लिए ‘लाल सोना’ कहलाता था, वही अब उनकी खेती से दूरी का कारण बन चुका है। एक दशक पहले सैकड़ों हैक्टेयर में लहलहाते लाल टमाटर के खेत अब गिने-चुने रह गए हैं।
टमाटर की खेती के लिए मशहूर खतैपुरा, रुपपुरा, रामसिंहपुरा, पीलिया, देवगांव, खिजुरिया तिवाड़ीयान, पालावाला जाटान, अचलपुरा, दनाऊ कलां, घासीपुरा, करणगढ़, कुंदनपुरा और नगराजपुरा गांवों के किसानों का कहना है कि टमाटर की फसल में अब कई तरह के रोग लगते हैं। इनकी रोकथाम के लिए कृषि विभाग से समय पर न तो सलाह मिलती है, न ही उचित दवाइयां।
उत्पादन घटने से व्यापार पर सीधा असर पड़ा है। किसान बताते हैं कि पहले जयपुर और आस-पास के बड़े स्टोर मालिक खुद ट्रक लेकर गांवों में आते थे और खेत से सीधे टमाटर खरीदते थे। अब उत्पादन कम होने के कारण व्यापारी आना बंद कर चुके हैं। पहले तूंगा, अणतपुरा, लालगढ़, टोडा भाटा, फालियावास, सिंदौली जैसे गांव टमाटर उत्पादन के बड़े केंद्र थे। आज इन इलाकों में खेती का रकबा 70त्न तक घट गया है।
टमाटर उत्पादन के चरम समय में सरकार ने बस्सी में राज्य की पहली टमाटर मंडी भी स्थापित की थी। उस दौर में यहां से रोजाना सैकड़ों ट्रक टमाटर जयपुर, दिल्ली और आगरा तक भेजे जाते थे। किसानों के अनुसार जब पैदावार घटने लगी तो खरीदारों का आना भी कम हो गया। किसानों को पैदावार के मुताबिक मुनाफा नहीं मिलने से अब किसान टमाटर से मुंह फेर रहे हैं।
किसानों को मजबूरन बाजार से ऊंचे दामों पर कीटनाशक खरीदने पड़ते हैं, जिससे लागत लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं, टमाटर के बाजार भावों में भारी अस्थिरता ने किसानों की कमर तोड़ दी है। कभी टमाटर 60 से 80 रुपए किलो बिकता है तो कभी इतना सस्ता हो जाता है कि लागत भी नहीं निकलती। किसान छीतरमल बालोत ने बताया कि कई बार फसल बिकती नहीं तो हमें खेतों में ही टमाटर फेंकने पड़ते हैं, मिट्टी टमाटर के लिए अच्छी है, पैदावार भी शानदार होती है, लेकिन बाजार और दवाओं की मार ने खेती को घाटे का सौदा बना दिया।
स्थानीय किसानों का कहना है कि टमाटर की खेती को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर ठोस योजना और सहायता की आवश्यकता है। रोग नियंत्रण के लिए अनुसंधान केंद्र, दवाओं पर सब्सिडी और फसल बीमा की व्यवस्था की जाए तो किसान फिर से इस फसल की ओर लौट सकते हैं।
टमाटर की खेती भले ही सिमट गई हो, लेकिन मिट्टी और मौसम अब भी इस फसल के अनुकूल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कृषि विभाग समय पर दवा, प्रशिक्षण और मूल्य स्थिरीकरण की नीति लाए तो यह क्षेत्र एक बार फिर ‘लाल सोना’ की चमक हासिल कर सकता है।
कृषि विभाग के अनुसार तीन-चार साल पहले तूंगा और बस्सी क्षेत्र में करीब 10 हजार हैक्टेयर भूमि में टमाटर की खेती होती थी। यह क्षेत्र राजस्थान ही नहीं, बल्कि हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश तक यहां का टमाटर प्रसिद्ध था।
कभी 10 हजार हैक्टेयर में होती थी खेती, अब केवल ढाई हजार में
महंगी दवाइयां, अस्थिर बाजार और रोग बने नुकसान का कारण
सरकार ने टमाटर मंडी खोली थी बस्सी में, अब रौनक नहीं
किसानों को चाहिए सब्सिडी, प्रशिक्षण और फसल बीमा
इस वर्ष यह खेती घटकर केवल ढाई हजार हैक्टेयर तक सिमट गई है। महंगी दवाइयां, बाजार की अस्थिरता और किसानों को समय पर मार्गदर्शन नहीं मिलने से रकबा घटा है। हम जल्द ही किसानों को फिर से टमाटर की खेती के लिए प्रेरित करेंगे।
रामप्रसाद मीणा, सहायक कृषि अधिकारी तूंगा
रोग और बाजार की अनिश्चितता ने किसानों को हतोत्साहित कर दिया है। लगातार घाटे से किसान अब सब्जियों की जगह गेहूं, जौ या सरसों जैसी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं।
मुकेश देवांदा, कृषि सलाहकार
कृषि विभाग से न तो तकनीकी सहायता मिलती है और न ही नुकसान पर राहत। ऐसे में हम मजबूरन अन्य फसलों की ओर मुड़ रहे हैं।
छीतरमल बालोत, किसान, रामसिंहपुरा
Published on:
30 Oct 2025 03:17 pm
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