जिस कमरे में आग लगी, उसमें सुरक्षा को लेकर सेंटर लॉक लगे हुए थे। आग बुझने के बाद प्रथम मंजिल पर शौर्य व अनिमेष दरवाजे के आसपास पड़े मिले। ऐसे में माना जा रहा है कि कहीं सेटंर लॉक का नहीं खुलना ही घर से बाहर निकलने में बाधा बना। पड़ोसियों के मुताबिक संजीव गर्ग के घर में हॉल के मुख्य दरवाजे के अलावा अन्य कमरों में भी सेंसर लॉक लगे थे। जो घर में आग लगने के साथ ही बिजली गुल होने से सेंसर लॉक भी जाम हो गए। ऐसे में परिवार के लोग बाहर नहीं निकल सके।
सेंसर लॉक बेटरी से चलते हैं, जो ऑटोमेटिक खुलते व बंद होते हैं। लेकिन आग लगने के कारण जलने की स्थिति में स्वत: ही लॉक हो जाते हैं। जिन्हें आसानी से खोल पाना आसान नहीं है।
– सुशील झालानी, सेंटर लॉक कारोबारी
समय रहते दमकल की सीढि़यां खुल जाती या फिर समय पर मकान के खिड़की-दरवाजे तोड़ दिए जाते तो अनिमेष की जान बच सकती थी। घर में दमकलकर्मी पहुंचे, तब भी अनिमेष की सांसें चल रही थीं। उसे और शौर्य को मणिपाल अस्पताल पहुंचाया गया, जहां पर शौर्य को चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया। जबकि अनिमेष ने कुछ देर बाद दम तोड़ दिया।
आग लगने के दो घंटे बाद फायर ब्रिगेड पहुंची, बालकनी में गेट के पास दो जने बेहोश पड़े थे। फायर ब्रिगेड की नोजल काम नहीं कर रही थी, सीढिय़ां नहीं खुली, पाइप छोटा था, गाड़ी में पानी, हेलमेट और मास्क भी नहीं था। फायर कर्मी दीवार पर कूदकर जाने में सक्षम नहीं थे
मकान जाल से कवर नहीं होता तो बच्चों को हम बचा लेते, हमारी आंखों के सामने बच्चे चिल्ला रहे थे, बोल रहे थे कि अंकल हमें बचाओ। वहीं हमारा मकान भी आधा जल गया, कूलर, पर्दे, फाइबर सीट, गेट, गद्दे, पलंग जल गए। आग इतनी भंयकर थी की हमारी तीसरी मंजिल पर रखी पानी की टंकिया भी जल गई।
– लोकेश, पड़ोसी