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अंकल मुझे बचा लो, जिंदगी की भीख मांग रही चीख 10 मिनट में हो गई खामोश, मिले कंकाल

अंकल बचा लो हमें...कुछ नजर नहीं आ रहा, दम घुट रहा है और आग में घिरे हैं..., यह कहना है संजीव गर्ग के पीछे वाले मकान में रहने वाले का।

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जयपुर। अंकल बचा लो हमें...कुछ नजर नहीं आ रहा, दम घुट रहा है और आग में घिरे हैं..., यह कहना है संजीव गर्ग के पीछे वाले मकान में रहने वाले हनुमान प्रसाद बाडोलिया का। वे सुबह सवा चार बजे चिल्लाने की आवाज पर जागे। महेन्द्र, अपूर्वा व अर्पिता के कमरों के पीछे उनका कमरा है। बीच में गैलेरी है। दोनों बच्चियां चिल्ला रही थीं दादाजी इधर आ जाओ, बाहर निकल नहीं सकते, उधर दादा महेन्द्र आग में फंसे होने का हवाला दे रहे थे।

हनुमान ने बताया कि तभी वे भी चिल्लाए अपूर्वा क्या हुआ। तब दोनों बच्चियां कमरे में बने स्टोर से उन्हें बचाने के लिए आवाज लगाने लगीं। अंकल हमें बचा लो...प्लीज हमें बचा लो। तभी हनुमान का बेटा भी जाग गया। उन्होंने बताया कि धुआं आ रहा था। दोनों घरों के बीच मजबूत जाल लगा था और उस पर भी मोटी फायबर शीट लगी थी। आस-पास के लोगों को जगाया, तब तक आग की लपटें उनके घर की खिड़की, दरवाजों और पर्दों को अपनी चपेट में ले चुकी थीं।

विद्याधर नगर में संजीव गर्ग के घर में
जिस कमरे में आग लगी, उसमें सुरक्षा को लेकर सेंटर लॉक लगे हुए थे। आग बुझने के बाद प्रथम मंजिल पर शौर्य व अनिमेष दरवाजे के आसपास पड़े मिले। ऐसे में माना जा रहा है कि कहीं सेटंर लॉक का नहीं खुलना ही घर से बाहर निकलने में बाधा बना। पड़ोसियों के मुताबिक संजीव गर्ग के घर में हॉल के मुख्य दरवाजे के अलावा अन्य कमरों में भी सेंसर लॉक लगे थे। जो घर में आग लगने के साथ ही बिजली गुल होने से सेंसर लॉक भी जाम हो गए। ऐसे में परिवार के लोग बाहर नहीं निकल सके।

गर्म हो जाने पर हो जाता है लॉक...
सेंसर लॉक बेटरी से चलते हैं, जो ऑटोमेटिक खुलते व बंद होते हैं। लेकिन आग लगने के कारण जलने की स्थिति में स्वत: ही लॉक हो जाते हैं। जिन्हें आसानी से खोल पाना आसान नहीं है।
- सुशील झालानी, सेंटर लॉक कारोबारी

जाल से चढऩे की कोशिश पर आग ने जला डाला
समय रहते दमकल की सीढि़यां खुल जाती या फिर समय पर मकान के खिड़की-दरवाजे तोड़ दिए जाते तो अनिमेष की जान बच सकती थी। घर में दमकलकर्मी पहुंचे, तब भी अनिमेष की सांसें चल रही थीं। उसे और शौर्य को मणिपाल अस्पताल पहुंचाया गया, जहां पर शौर्य को चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया। जबकि अनिमेष ने कुछ देर बाद दम तोड़ दिया।

दो दमकल कर्मी आग में दहकते मकान में अंदर पहुंचे, जहां पर स्टोर में दोनों बहनों का घुटनों के बल पड़ा कंकाल मिला। महेन्द्र का शव उनके कमरे के पीछे गेट के पास था, जिसमें उनका एक पैर उठा हुआ मिला। इससे आशंका जताई जा रही है कि वे जाल पकड़ पीछे दीवार पर चढऩे का प्रयास कर रहे होंगे। दोनों दमकलकर्मी तीनों के शव बाहर निकालकर लाए। वहीं बाहर बालकनी से पहली मंजिल पर पहुंच कर गेट का लॉक तोड़ा गया। अनिमेष और शौर्य वहां पड़े मिले।

दीवार देखते ही दमकल कर्मी बोला, घुटने में दर्द है
आग लगने के दो घंटे बाद फायर ब्रिगेड पहुंची, बालकनी में गेट के पास दो जने बेहोश पड़े थे। फायर ब्रिगेड की नोजल काम नहीं कर रही थी, सीढिय़ां नहीं खुली, पाइप छोटा था, गाड़ी में पानी, हेलमेट और मास्क भी नहीं था। फायर कर्मी दीवार पर कूदकर जाने में सक्षम नहीं थे

- मनीष, प्रत्यक्षदर्शी

कांच चटकने की आवाज से प्रात: 4 बजे आंख खुली। बाहर बालकनी में देखा तो धुंआ उठ रहा था, पुलिस 15 मिनिट बाद पहुंची। फायर वाले 1.5 घन्टे बाद पहुंचे। फायरमैन ने कहा घुटने में दर्द है, दीवार पर चढ़कर अन्दर नहीं जा सकता।

- नीरज, प्रत्यक्षदर्शी

---कांच के सीसे गिरने की आवाज से आंख खुली, बाहर आकर देखा तो पड़ोस के मकान में आग लग रही है, पानी की बाल्टी भर कर लाया, सामने वाले पड़ोसी को सूचना दी

- खालिद, मजदूर
मकान जाल से कवर नहीं होता तो बच्चों को हम बचा लेते, हमारी आंखों के सामने बच्चे चिल्ला रहे थे, बोल रहे थे कि अंकल हमें बचाओ। वहीं हमारा मकान भी आधा जल गया, कूलर, पर्दे, फाइबर सीट, गेट, गद्दे, पलंग जल गए। आग इतनी भंयकर थी की हमारी तीसरी मंजिल पर रखी पानी की टंकिया भी जल गई।
- लोकेश, पड़ोसी