बच्चों के ऑनलाइन नेटवर्क के इस्तेमाल को लेकर रेखा खींचनी होगी जिससे उन्हें भविष्य के खतरों से बचाया जा सके। इससे बच्चे का दिमाग तेज और स्वस्थ होगा। क्या ये सही है कि सिलिकॉन वैली के टेक्नोलॉजी इंजीनियर अपने बच्चों को स्क्रीन पर समय नहीं बिताने देते हैं? जी हां ये सही है कि टेक कंपनी में काम करने वाले इंजीनियर्स और एग्जक्यूटिव अपने बच्चों को स्क्रीन से दूर रखने में लगे हुए हैं। स्थिति ये है कि जो लोग ऐसा नहीं कर पा रहे हैं वे खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हैल्थ की एडॉलेसेंट ब्रेन कॉग्निटिव डेवलपमेंट (एबीसीडी) रिपोर्ट के अनुसार 11 हजार किशोरों पर शोध कर ये जानने की कोशिश की गई कि वे कौन सी वजहें हैं जिससे बच्चे किसी बात को लेकर प्रोत्साहित होते हैं और उसका दिमाग पर क्या असर पड़ता है।
शोध में पता चला कि डिजिटल मीडिया के इस्तेमाल से सबसे अधिक बच्चों की नींद प्रभावित होती है। स्लीप रिसर्चर मैथ्यू वॉल्कर ने किताब ‘वॉय वी स्लीप’ में लिखा है कि नींद प्रभावित होने से एकाग्रता खत्म होती है, दिमाग अस्थिर रहता है। मानिसक स्वास्थ्य बिगड़ता है जिससे बच्चे का जीवन प्रभावित होता है। कोई नया ऐप डाउनलोड करने या ऑनलाइन अकाउंट बनाने से पहले उसके बारे में अच्छे से जान लें। ऐसा करेंगे तो भविष्य की परेशानी से बच सकेंगे।
इन नियमों का पालन जरूरी
बच्चों को दिनभर में रात को एक घंटे स्क्रीन पर समय बिताने दें लेकिन स्कूल होमवर्क और डिनर होने के बाद। स्कूल प्रोग्राम में कंप्यूटर को टीचिंग टूल के तौर पर इस्तेमाल किया जाए। प्यू रिसर्च सेंटर रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी देशों के 81 फीसदी किशोर सोशल मीडिया के माध्यम से अपने दोस्तों के साथ जुड़े हैं जबकि 69 फीसदी अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों से भी जुड़े हैं। बच्चों को टीवी और मोबाइल पर समय बिताने से रोकने की बजाए योजना बनाएं कि उन्हें कितना समय देना चाहिए