
जयपुर। देश में साइबर अपराध जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसे रोकने के प्रयास उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहे। अपराध के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अलग से साइबर थाने और साइबर सेल का गठन तो कर दिया गया, लेकिन स्टाफ के नाम पर अयोग्य पुलिसकर्मियों को लगा दिया जाता है।
इससे साइबर अपराध के खिलाफ कार्रवाई खानापूर्ति बनकर रह जाती है। आइटी एक्ट के तहत साइबर अपराध होने पर निरीक्षक से नीचे के पुलिसकर्मी अनुसंधान नहीं कर सकता। ठग इसी का फायदा उठाते हैं।
साइबर अपराधियों के गढ़ में दूसरे राज्य की पुलिस की ओर से कार्रवाई करना आसान नहीं होता है। ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें गांव के गांव साइबर ठगी में लिप्त हैं, जो जांच में सबसे बड़ी बाधा है। पुलिसकर्मियों के मुताबिक, सभी राज्यों की पुलिस की एक संयुक्त सैल होनी चाहिए, ताकि तुरंत कार्रवाई हो सके।
-भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आइसी) के तहत राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.gov.in) पर किसी भी तरह के साइबर अपराधों से संबंधित घटनाएं रिपोर्ट की जा सकती है।
-वित्तीय धोखाधड़ी की तत्काल रिपोर्टिंग और जालसाजों की और से धन की हेराफेरी रोकने के लिए नागरिक विसीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली से सहायता ली जा सकती है।
-ऑनलाइन पाठ्यक्रम के माध्यम से पुलिस अधिकारियों, न्यायिक अधिकारियों की क्षमता निर्माण के लिए ओपन ऑनलाइन पाठ्यक्रम (एमओओसी) साइट्रेन पोर्टल (नेशनल साइबरक्राइम ट्रेनिंग सेंटर) पर मुहैया कराए गए हैं।
आइटी एक्ट में अनुसंधान का स्तर उप निरीक्षक तक करना चाहिए। साइबर अपराधी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जिसके लिए कई देशों का इंटरनेट इस्तेमाल होता है। त्वरित कार्रवाई के लिए पुलिस को हाईटेक सॉफ्टवेयर व तकनीक से लैस करना होगा।
-दीपक चौहान, अधिवक्ता, राजस्थान हाईकोर्ट
Updated on:
14 Dec 2024 10:32 am
Published on:
14 Dec 2024 10:27 am
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