ये गांव है झुंझुनूं के मलसीसर उपखंड में। नाम है धनूरी। देशभर में इसे शहीदों के गांव के रूप में पहचान मिली है। मातृभूमि के लिए मर मिटने का जिक्र होते ही सबसे पहले धनूरी का नाम सामने आता है। गांव के 17 मुस्लिम सपूतों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए शहादत दी है। मुस्लिम बाहुल्य इस गांव का नाम देश में सर्वाधिक शहीद देने वाले पहले तीन गांवों में शुमार है। पहले और विश्व युद्ध में भी इस गांव के दस जाबांज शहीद हुए थे। पहले विश्व युद्ध में धनूरी के छह और दूसरे विश्व युद्ध में चार जवानों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए शहादत दी। आजादी के बाद भी इस गांव से सात जवान शहीद हो चुके हैं। इनमें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सर्जिकल स्ट्राइक की तरह ही रेड स्ट्राइक को अमल में लाने वाले मेजर एमएच खान भी शामिल हैं। युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए खान को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
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फौजी सप्लाई करने वाली फैक्ट्री- धनूरी गांव को यदि भारतीय सेना को फौजी सप्लाई करने वाली फैक्ट्री कहा जाए तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज भी गांव के लोगों में राष्ट्रसेवा का जज्बा कूट कूट कर भरा है। एक हजार की आबादी वाले इस गांव के 270 लोग अभी सेना की विभिन्न इकाइयों में कार्यरत हैं और साढ़े चार सौ से ज्यादा गौरव सैनानी (पूर्व सैनिक) गांव में रहते हैं। बना हुआ है जज्बा- गांव के युवाओं में आज भी सेना में भर्ती होने का जज्बा इस कदर हावी है कि यहां के युवा सुबह साढ़े 4 बजे उठकर दौड़ लगाते हैं।शाम को भी अभ्यास करते हैं। खेलों के जरिए भी खुद को तैयार करते हैं। हर सेना भर्ती में गांव के युवा पहुंचते हैं। सेना में सेवा दे चुके गौरव सेनानी भी युवाओं को प्रोत्साहित करते हैं। सेना में कार्यरत जवान छुट्टी पर आकर खेलकूद प्रतियोगिताओं के जरिए युवाओं की हौंसला अफजाई करते हैं। केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) से रिटायर्ड मोहम्मद हसन का कहना है कि गांव के हर घर का नाता भारतीय सेना से है। गांव के ही गौरव सैनानी अरशद अली कहते हैं कि धनूरी में जन्मे हर व्यक्ति में देश भक्ति का पैदाइशी जज्बा है। खुद उनके परिवार के चार लोग अभी सेना में कार्यरत हैं।
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शहीद स्मारक का सपना- गांव के लोगों को मलाल है कि यहां शहीद स्मारक लम्बे इंतजार के बाद भी नहीं बन पाया है। गांव के लिए कैंटीन की सुविधा भी नहीं है तो गांव की हायर सैकंड्री स्कूल का नाम भी शहीद एचएम खान के नाम पर नहीं हो पाया है। धनेरू में रह रहे सेना के रिटायर्ड कैप्टन अली हसन खान का कहना है कि गांव के लोग सरकार से शहीद स्मारक के लिए जमीन आवंटित करने की मांग करते रहे हैं, लेकिन उनकी सुनी ही नहीं जा रही। केवल नामपट्टिका- गांव की सरकारी स्कूल पर शहीद के नाम का उल्लेख होने से ही अहसास होता है कि धनूरी शहीदों का गांव है। गांव के लोगों को मलाल है कि राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय के बोर्ड पर तो शहीद मेजर एम.एच. खान का नाम है, लेकिन कागजो में आज भी यह स्कूल वीर चक्र विजेता शहीद के नाम नहीं हो सका है।