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Janmashtami 2022: राजस्थान के ये प्रसिद्ध तीन कृष्ण मंदिर, जहां पूरी होती है हर मनोकामना

Janmashtami 2022: छोटीकाशी में शुक्रवार को कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव की रंगत एक बार फिर से परवान चढ़ेगी। शहर के प्रमुख कृष्ण मंदिरों में साज सजावट से लेकर तैयारियां पूरी तरह से चाक चौबंद की गई है।

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Janmashtmi 2022: jaipur govind dev ji karauli madan mohan ji mandir

हर्षित जैन/जयपुर। Janmashtami 2022: छोटीकाशी में शुक्रवार को कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव की रंगत एक बार फिर से परवान चढ़ेगी। शहर के प्रमुख कृष्ण मंदिरों में साज सजावट से लेकर तैयारियां पूरी तरह से चाक चौबंद की गई है। जयपुर के आराध्य राधागोविंद देव जी, पुरानी बस्ती स्थित राधा गोपीनाथ जी और करौली में स्थित मदनमोहन जी के प्रसिद्ध मंदिर है। यहां भगवान कृष्ण की अलग-अलग छवियों के विग्रह श्रद्धालुओं की आस्था का गहरा केंद्र है।

अनेक श्रद्धालु इन तीनों मंदिरों में एक ही दिन में दर्शनों को पहुंचते हैं। मान्यता है तीनों मंदिरों में एक दिन में ही सूर्यास्त से पहले दर्शन करने से सभी मनोकामना पूरी होती है। पत्थर से बनी कृष्ण की तीन छवियां मुखारविंद गोविंददेव जी, पुरानी बस्ती स्थित वक्षस्थल राधा गोपीनाथ जी और चरण करौली स्थित मदनमोहन जी मंदिर में विराजमान है।

इसलिए है खास
गोविंद देव जी मंदिर के महंत अंजन कुमार गोस्वामी ने बताया कि धार्मिक मान्यता है कि भगवान कृष्ण के प्रपौत्र पद्नानाभ ने अपनी दादी से भगवान कृष्ण के स्वरूप के बारे में पूछा। भगवान कृष्ण के स्वरूप को जानने के लिए उन्होंने काले पत्थर पर कृष्ण स्नान करते थे उस पत्थर से तीन मूर्तियों का निर्माण किया। पहली मूर्ति में भगवान कृष्ण के मुखारविंद की छवि आई जो आज जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर में विराजमान है।

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संपूर्ण स्वरूप के दर्शन
दूसरी मूर्ति में भगवान कृष्ण के वक्षस्थल की छवि आई जो जयपुर के ही जयलाल मुंशी के चौथे चौराहे पर स्थित गोपीनाथ जी के मंदिर में विराजमान है। तीसरी मूर्ति में भगवान कृष्ण के चरणारविंद की छवि आई जो करौली में भगवान मदन मोहन के रूप में विराजमान है। गोपीनाथ जी को वृंदावन से मुगलों के आक्रमण से बचाकर एक भक्‍त ने जयपुर लाया। जयपुर में गोविन्ददेव जी के विग्रह को तो चंद्रमहल के सामने जयनिवास उद्यान के मध्य बारहदरी में प्रतिष्ठित किया गया था।

औरंगजेब के आतंक से अन्य विग्रहों के साथ मूल गोपीनाथजी, जाह्नवीजी और राधा जी को जयपुर स्थानांतरित कर दिया गया। सं. 1819 में नंदकुमार वसु द्वारा नवनिर्मित मन्दिर में प्रतिमूर्ति स्थापित की गई। मंदिर निर्माण से पूर्व ही सं 1748 ई० में प्रतिमूर्ति की स्थापना हो चुकी थी। नए मन्दिर के पास ही पूर्व दिशा में मधुपंडित जी की समाधी विराजमान है। गोपीनाथजी के दक्षिण पार्श्व में राधाजी व ललिता सखी विराजमान हैं।

महंत सिद्धार्थ गोस्वामी ने बताया कि राधा गोपीनाथजी के दर्शनार्थी भी प्रतिदिन बड़ी संख्या में आते हैं। पिछले कुछ सालों से गोपीनाथ जी की मान्यता काफी बढ़ गई है। श्रद्धालु गोपीनाथ की छवि को निहारने के लिए सुबह-शाम रोजाना आते हैं। प्राचीन दस्तावेजों के अनुसार आज से लगभग सवा दो सौ साल पहले गोपीनाथजी का विग्रह जयपुर लाया गया और पुरानी बस्ती स्थित उसी स्थान पर प्रतिष्ठापित किया गया। जहां वर्तमान में मौजूद है।

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राजा जयसिंह ने बनवाया था मंदिर
गोविंददेवजी जयपुर के राज परिवार के इष्ट देव हैं। शहर के संस्थापक जयसिंह और उसके बाद के सभी शासकों ने गोविंद देवजी की भक्ति की है। मंदिर का निर्माण सं. 1735 में हुआ। सवाई जयसिंह ने जयनिवास में गोविंद देवजी की प्रतिमा को रखवाया और 1715 से 1735 तक गोविंद देवजी जयनिवास में ही रहे।

गोविंद देवजी के सामने विशाल मन्दिर ऐसा था कि सोने से पहले और प्रातः उठने पर महाराजा अपने शयन कक्ष से ही सीधे गोविंद देवजी के दर्शन करते और आशीर्वाद लेते थे। मंदिर प्रबंधक मानस गोस्वामी ने बताया कि रोजाना जयपुर ही नहीं बल्कि देशभर से भक्त शहर आराध्य का दीदार करने पहुंचते हैं। सुबह से लेकर रात तक झाकियांं में रोजाना 15 हजार भक्त यहां पहुंचते हैं।