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रवीन्द्र नाथ टैगोर की स्मृति में ‘काबुलीवाला’ का हुआ आयोजन

जवाहर कला केन्द्र की ओर से चल रहे 'नौनिहाल' के तहत शनिवार को रवीन्द्र नाथ टैगोर की स्मृति में कठपुतली नाटक 'काबुलीवाला' का मंचन किया गया।

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रवीन्द्र नाथ टैगोर की स्मृति में 'काबुलीवाला' का हुआ आयोजन

रवीन्द्र नाथ टैगोर की स्मृति में 'काबुलीवाला' का हुआ आयोजन

जयपुर। जवाहर कला केन्द्र की ओर से चल रहे 'नौनिहाल' के तहत शनिवार को रवीन्द्र नाथ टैगोर की स्मृति में कठपुतली नाटक 'काबुलीवाला' का मंचन किया गया। नाट्य निर्देशक लईक हुसैन के निर्देशन में हुए नाटक में टैगोर की प्रसिद्ध कहानी काबुलीवाला के मर्म को कठपुतलियों ने मंच पर जाहिर किया। कठपुतलियों ने पूरी जीवंतता के साथ कभी हंसाने और कभी रुलाने के साथ कठपुतलियों ने दर्शकों में मिलेझुले भावों को जागृत किया।


यह है नाटक का सार....

बैकग्राउंड में 'काबुलीवाला आया, सूखे मेवे लाया' गीत बजते हुए नाटक की शुरूआत की जाती है। तभी मिनी काबुलीवाले को आवाज देकर रोकती है, वह उससे मिलना चाहती है, पर वह डरती है कि काबुलीवाला उसे उठा ना ले। पिता के समझाने पर मिनी और काबुलीवाले की दोस्ती हो जाती है। मिनी की मां संदेह कर काबुलीवाले को धमकाकर भगा देती है। मिनी और काबुलीवाला नम आंखों के साथ एक दूसरे से दूर होते है। तभी कहानी में मोड़ आता है। उधारी के पैसे लेने पहुंचे काबुलीवाले से अनजाने में सेठ की हत्या हो जाती है। सजा काटकर जब वह 10 साल बाद वापस आता है तब काबुलीवाला मिनी की विदाई से पहले उससे मिलता है। दोनों के पुराने दिनों की यादें ताजा हो जाती है।