
Maharaja School Of Art
जयपुर . कभी जिन हुनरों के लिए गुलाबीनगर पूरी दुनिया में विख्यात था, वे आज गुम हो गए हैं और इन्हें विदेशों में अपना लिया है। पहले ये हमारी शान थे, लेकिन अब गुमनामी का शिकार हो गए है। इसकी जीती जागती मिसाल है राजधानी का महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट। स्कूल में 1938 तक चल रहे हुनरमंदी के कई पाठ्यक्रम बंद कर दिए गए। रॉयल कॉलेज ऑफ आटर्स, लंदन ने इन पाठ्यक्रमों को अपना लिया। जबकि हमारे यहां अब ये नहीं हैं। लंदन में गहने बनाने से लेकर मीनाकारी का प्रशिक्षण विभिन्न पाठ्यक्रमों में दिया जा रहा है। पूरी दुनिया के छात्र वहां इस हुनर को सीखने आ रहे हैं। 161 वर्ष पहले शुरू किए गए स्कूल में अब न प्रदर्शनी लगती है और न ही प्रदेश की कला को सिखाने वाले हुनरमंद हैं। सब कुछ धीरे—धीरे खत्म होता जा रहा है।
अब बचे ये पाठ्यक्रम
राजस्थान विवि से संबंधित स्कूल में फिलहाल विजुअल आर्ट में चार वर्षीय बैचलर डिग्री व दो वर्षीय मास्टर डिग्री का कोर्स चल रहा है। ये कोर्स पेंटिंग, स्कल्पचर और एपलाइड आर्ट में करवाया जा रहा है। अधिकतम 336 छात्रों की क्षमता होने के बावजूद फिलहाल केवल 220 छात्र ही पढ़ रहे हैं। छात्रों व शिक्षकों की कमी के चलते पिछले साल स्कल्पचर का पाठ्यक्रम बंद कर दिया गया।
पहले था मदरसा-ए-हुनरी
महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय ने वर्ष 1857 में किशनपोल बाजार में कला को बढ़ावा देने के लिए मदरसा-ए-हुनरी की शुरुआत की थी। इसके बाद 1886 में इसका नाम बदलकर महाराजा स्कूल ऑफ आटर्स एंड क्रॉफ्ट कर दिया गया।
तब सिखाते थे मीनाकारी, जड़ाई
स्कूल की वर्ष 1938 की विवरणिका के अनुसार स्कूल में उस समय मीनाकारी, जड़ाई, सोने-चांदी के गहनों का निर्माण, मैटल पॉलिश, पॉटरी, आयरन वर्क, लकड़ी का काम आदि सिखाया जाता था। स्कूल में पढ़ाई के साथ नौकरी तक का इंतजाम किया जाता था। स्कूल में फाइन आटर्स व क्रॉफ्ट विभाग थे।
Published on:
06 May 2018 09:30 am
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