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गांधी दर्शन में अस्पृश्यता उन्मूलन, मोहनदास से इसलिए बने महात्मा गांधी

Mahatma Gandhi philosophy : गांधी दर्शन के मूल में राज्य और समाज में अन्तर्निहित असमानताओं की प्रमुख भूमिका रही है।

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Mahatma Gandhi philosophy Center for International Studies JNU RU

गांधी दर्शन में अस्पृश्यता उन्मूलन, मोहनदास से इसलिए बने महात्मा गांधी

जयपुर
Mahatma Gandhi philosophy : गांधी दर्शन के मूल में राज्य और समाज में अन्तर्निहित असमानताओं की प्रमुख भूमिका रही है। मोहनदास करमचन्द गांधी को महात्मा गांधी बनने में समाज और राज्य जनित असमानता और विभेद ने नींव के पत्थर का काम किया। जिसने गांधी को दार्शनिक अराजकतावादी से व्यवहारिक आदर्शवादी बनाया। गांधी ने शांति और सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए अहिंसा को अपना प्रमुख अस्त्र बनाया। राजस्थान विश्वविद्यालय के गांधी अध्ययन केन्द्र में शनिवार को गांधी दर्शन में अस्पृश्यता उन्मूलन विषय पर हुए व्याख्यान में नई दिल्ली के जेएनयू में सेन्टर फोर इन्टरनेशनल स्ट्डीज के चैयरपर्सन प्रोफेसर संजय भारद्वाज ने बतौर मुख्य वक्ता यह बात कही। उन्होंने कहा कि गांधी दर्शन के मूल में राज्य और समाज में अन्तर्निहित असमानताओं की प्रमुख भूमिका रही है। मोहनदास करमचन्द गांधी को महात्मा गांधी बनने में समाज और राज्य जनित असमानता और विभेद ने नींव के पत्थर का काम किया। जिसने गांधी को दार्शनिक अराजकतावादी से व्यवहारिक आदर्शवादी बनाया।

गांधी ने शांति और सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए अहिंसा को अपना प्रमुख अस्त्र बनाया। अछूतपन या अस्पृश्यता को गांधी बचपन से ही एक सामाजिक बुराई और पाप मानते थे। अस्पृश्यता के खिलाफ गांधीजी के इस विचार ने दक्षिण अफ्रीका में सत्यग्रह के दौरान काफी प्रगति की। अस्पृश्यता के विरूद्ध गांधीजी का पहला व्यावहारिक सिद्धान्त अमृतलाल ठक्कर (ठक्कर बप्पा) द्वारा गांधी आश्रम में रहने की इच्छा और गांधी की अनुमति से स्थापित हुआ। इस प्रसंग का उल्लेख गांधीजी ने अपनी आत्माकथा में भी ’’सहायक मित्र मण्डली में खलबली’’ के रूप में किया है। समाजसेवी गोपाल गुप्ता, प्रो. आनन्द कश्यप, पुष्पेन्द्र सिंह देशववाल, डॉ. विनोद चौपड़ा, डॉ. अनिल अनिकेत, डॉ. सुमन मौर्य, डॉ. नीलम जोशी डॉ. बद्री नारायण, दीपक शर्मा सहित अनेक शिक्षक, विधार्थियों एंव शोधर्थियों ने भाग लिया। ­

अस्पृश्यता के लिए नहीं था स्थान
व्याख्यान में गांधी अध्ययन केन्द्र के केन्द्र के निदेशक डॉ. राजेश कुमार शर्मा ने कहा कि अस्पृश्यता के लिए गांधी के आश्रम में कोई स्थान नहीं था। इसलिए गांधीजी ने अस्पृश्यता को भी बाद में एकादश महाव्रतों में प्रमुखता से स्थान दिया। यरवड़ा जेल के अन्दर 20 सितम्बर 1932 के ऐतिहासिक उपवास से ’पूना-पैक्ट’ और अस्पृश्यता निवारण के आन्दोलन ने जोर पकड़ा। लंदन में द्वितीय गोलमेज परिषद की अल्पसंख्यक समिति की अंतिम बैठक में भाषण देते हुए गांधीजी ने बडी बेदना से कहा कि अस्पृश्यों को यदि हिन्दू समाज से अलग करने का प्रयत्न किया गया, तो मैं उसका मुकाबला प्राणों की बाजी लगाकर भी करूॅगा। भारत की आजादी हासिल करने के लिए मैं अछूतों के हित को बेचने वाला नहीं हूॅ।