
पत्रिका फाइल फोटो
RGHS News: राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) के अंतर्गत कुछ निजी अस्पतालों में आउटडोर इलाज के लिए जाने वाले मरीजों के ओपीडी खाते में जमकर सेंध लगाई जा रही है। इन अस्पतालों में मरीज के योजना में पंजीकृत होेने का पता चलते ही अनावश्यक जांचों का बोझा थोपा जा रहा है।
चौंकाने वाली बात यह है कि कुछ मामलों में तो इलाज के बदले में बिल भी मरीज को नहीं दिए जा रहे। मरीज को एसएसओ आईडी या स्वीकृत भुगतान का मैसेज मिलने पर इतनी राशि का भुगतान उठाए जाने की जानकारी मिल रही है।
गौरतलब है कि चार साल पहले 600 करोड़ रुपए से शुरू हुई आरजीएचएस योजना का भुगतान 4200 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। इसके बाद इस साल आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से करवाई गई जांच में योजना के अंतर्गत बड़े स्तर पर फर्जीवाड़े के खुलासे हो चुके हैं।
एक सरकारी कर्मचारी महिला ने बताया कि चार महीने पहले वह अपनी बेटी की आंखों की सामान्य जांच के लिए एक अस्पताल में गई थी। तब 450 रुपए शुल्क लिया गया और कोई अतिरिक्त जांच नहीं कराई गई। हाल ही में जब वह स्वयं आंख दिखाने पहुंची तो उसे पता चला कि यह अस्पताल आरजीएचएस में सूचीबद्ध है।
उसने आरजीएचएस से पर्ची कटवाई और यहीं से कहानी पलट गई। महिला के मुताबिक उसे पहले कह दिया गया कि आपका चश्मे का नंबर सही है, फिर भी उसे अलग-अलग मशीनों पर भेजा जाता रहा। न तो किसी जांच की आवश्यकता समझाई गई, न यह बताया गया कि किन सेवाओं का शुल्क जुड़ रहा है।
कुछ देर बाद वह वापस आ गई। अस्पताल ने उसे केवल सामान्य फीस की रसीद दी। लेकिन असली झटका बाद में लगा। जब उसने अपनी एसएसओ आईडी पर आरजीएचएस क्लेम देखा तो आंखों की सामान्य जांच के नाम पर 2939 रुपए का भुगतान दर्ज था। हैरानी की बात यह कि इस राशि का कोई बिल न तो उसे दिया गया न उसकी फाइल में लगाया गया। अगर मैसेज और ऑनलाइन एंट्री नहीं होती तो मरीज को पता ही नहीं चलता।
आरजीएचएस में प्रत्येक लाभार्थी के लिए ओपीडी उपचार की एक तय सीमा है। जो आमतौर पर 20 हजार रुपए है। विशेषज्ञों का कहना है कि कई अस्पताल इस लिमिट को अवसर की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
जैसे ही मरीज आरजीएचएस का होता है, इलाज का मीटर तेज हो जाता है। अनावश्यक जांच और सामान्य परामर्श को महंगे पैकेज में बदलना और बिना मरीज की जानकारी सीधे क्लेम डालना। यह केवल एक मरीज का मामला नहीं है।
आरजीएचएस से जुड़े कई कर्मचारी और पेंशनर अब शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें इलाज के दौरान पूरा विवरण नहीं दिया जाता। बिल पारदर्शी नहीं होते और अस्पताल और सरकार के बीच का लेन-देन मरीज की जानकारी के बिना पूरा हो जाता है।
Updated on:
25 Dec 2025 01:10 pm
Published on:
25 Dec 2025 01:07 pm
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