
Tanot Mata Temple : तनोट माता मंदिर पाकिस्तान से करिब व राजस्थान की सुनहरी नगरी जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर स्थित है। इसे तनोटराय मातेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बलों के लिए एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक और सैन्य केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। चलिए आपको इस मंदिर की दिलचस्प चीज़ों के बारे में बताते है जिसके बाद आप सभी दंग रह जाएंगे।
प्राचीनता और महत्वपूर्ण : तनोट माता मंदिर की स्थापना 828 AD में भाटी राजपूत राजा तनु राव के द्वारा किया गया था। चारण साहित्य के अनुसार माना जाता है की तनोट माता युद्ध की देवी है क्योंकि वह हिंगलाज माता का अवतार हैं, जिसके बाद उनहें करणी माता के रूप देखा जाता है।
1965 और 1971 के युद्ध का चमत्कार सुनकर रह जाएंगे दंग : 1965 और 1971 में पाकिस्तानी गोलाबारी के दौरान तनोट माता मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ था, जबकी उसके पास की जगह तहस - नहस हो चुकी थी। ऐसा कहा जाता है कि 1965 में पाकिस्तानी सेना ने 3000 से भी अधिक बम गिराए थे, लेकिन तनोट माता मंदिर को एक भी खरोंच नहीं आई थी। वहीं 1971 में फिर इस मंदिर में हमला हुआ लेकिन हमलावर टैंक रेत में फंस गए, जिससे भारतीय वायु सेना ने उन्हें नष्ट कर दिया। यह इस मंदिर की चमत्कारी शक्तियों की ओर संकेत करता है।
सीमा सुरक्षा बल का भी केंद्र : 1965 के पाकिस्तानी हमले के बाद यह मंदिर की पूजा - अर्चना की जिम्मेदारी सुरक्षा बलों के जवानों ने ले ली। सेना यहां अपनी सुरक्षा की कामना करती है और पूजा-अर्चना करती है। यह मंदिर भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बलों के लिए एक आस्था का केंद्र है। वे यहां पूजा-अर्चना करते हैं और अपनी सुरक्षा की कामना करते हैं।
धार्मिक महत्व : तनोट माता को देवी दुर्गा का स्थानीय अवतार माना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी श्रद्धा से दीए जलाते हैं और धन, समृद्धि और सुख-शांति की कामना करते हैं।
पर्यटन का केंद्र: तनोट माता मंदिर पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय है, टूरिस्ट भी इस मंदिर को देखने के लिए आते हैं और यह क्षेत्र सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के मेल के लिए प्रसिद्ध है। दर्शन के बाद आप थार रेगिस्तान में ऊंट सफारी का भी मजा ले सकते हैं व जैसलमेर के राजसी किलों में जाने की प्लानिंग भी कर सकते हैं।
तनोट माता का इतिहास : बहुत समय पहले एक व्यक्ति थे जिनका नाम था मामड़जी चारण, उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने हिंगलाज माता की लगभग सात बार पैदल यात्रा की। एक रात जब हिंगलाज माता ने मामड़जी चारण (गढ़वी) को स्वप्न में यह पूछा कि तुम्हें पुत्र चाहिए या पुत्री, तो चारण ने कहा कि तुम मेरे घर जन्म लो। हिंगलाज माता की कृपा से उस घर में सात पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। इन पुत्रियों में से एक थीं आवड़ माता, जिन्हें आज तनोट माता के नाम से जाना जाता है।
म्यूजियम का निर्माण : युद्ध के बाद बीएसएफ ने एक म्यूजियम का निर्माण किया जहां आपको 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इस्तेमाल किए गए हथियारों और गोला-बारूद की प्रदर्शनी देखने को मिलेगी। दर्शन के बाद टूरिस्ट यहाँ भी घूम सकते है।
मंदिर की वास्तुकला : मंदिर की वास्तुकला बहुत ही सुन्दर तरीके से स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार की गई है। यह दो मंजिला इमारत है जिसका सेंट्रल डोम मंदिर के ताज सामान है। रंगीन पेंटिंग और जटिल नक्काशी, मंदिर की दीवारों को और भी खूबसूरत बनाती है। इसके चारों ओर एक बड़ा आंगन है जहां भक्तगण प्रार्थना करते हैं।
स्थानीय क्षेत्र : तनोट की सड़क मीलों-मील रेत के टीलों और रेत के पहाड़ों से घिरी हुई है। इस क्षेत्र में तापमान 49 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है। यहां जाने का आदर्श समय नवंबर से जनवरी के बीच है।
मंदिर के त्यौहार : यहाँ आरती व त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। नवरात्रि के दौरान यहां लोगों की खासा भीड़ उमड़ती है।
Updated on:
19 Jun 2024 04:17 pm
Published on:
19 Jun 2024 04:16 pm
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