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सजे हुए हैं साज, कोई पूछता नहीं

जोधपुर में इतने बड़े संगीत महोत्सव - राजस्थान अंतरराष्ट्रीय लोक उत्सव का आयोजन हुआ, दुनिया भर से संगीतकार जोधपुर आए, लेकिन इससे संगीत वाद्य यंत्रों या साजों की बिक्री पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।

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avanish kr upadhyay

Nov 01, 2015

जोधपुर में इतने बड़े संगीत महोत्सव - राजस्थान अंतरराष्ट्रीय लोक उत्सव का आयोजन हुआ, दुनिया भर से संगीतकार जोधपुर आए, लेकिन इससे संगीत वाद्य यंत्रों या साजों की बिक्री पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। संगीत साज की दुकानें सामान्य दिनों की तरह की व्यवसाय कर रही हैं। हां, इतना जरूर है कि विदेशी ग्राहकों या संगीत प्रेमियों का साज की दुकानों पर आना और पारंपरिक वाद्यों के बारे में पूछताछ करना बढ़ गया है।

स्थानीय मांग में कमी
बांसुरी की कर्णप्रिय ध्वनि, तबले की सुरीली थाप, मन को शांत कर देने वाली सारंगी और एेसे ही जाने कितने वाद्य यंत्र हैं, जो अपनी चमत्कारिक और रंगों भरी धुनों से सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। पर ये सच में निराशाजनक है कि भावनाओं का इजहार करने वाले वाद्य यंत्रों की पूछ-परख अपणायत का गढ़ कहे जाने वाले जोधपुर में ना के बराबर ही देखने को मिलती है।

इन वाद्य यंत्रों में तबले का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है और तबले का जब नाम आता है, वहां जाकिर हुसैन का नाम ना आए, ये तो असंभव है। जोधपुराइट्स शायद ना जानते हों कि जाकिर हुसैन का तबला जोधपुर के ही एक शख्स राजू चौहान ने बनाया है।

भारत ही नहीं, विश्वभर में जाकिर हुसैन के तबला वादन की सराहना करने वाले मौजूद हैं। जिस शहर ने तबला उस्ताद को तबला दिया, उसी शहर में वाद्य यंत्रों को लेकर रुचि ना के बराबर होना गौर करने लायक है।

शहर में तीन बड़े संगीत कार्यक्रम
पश्चिमी राजस्थान के सबसे बड़े शहर में जहां विशेष रूप से संगीत के तीन बड़े कार्यक्रम (राजस्थान इंटरनेशनल फोक फेस्टिवल, जोधपुर फ्लेमिंगो एण्ड जिप्सी फेस्टिवल और वल्र्ड सेक्रेड स्पिरिट फेस्टिवल) होते हैं, वहां लोगों में संगीत और वाद्य यंत्रों के लिए रुझान ना होना आश्चर्य पैदा करता है।

इस शहर में म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट सिखाने के लिए तो कई लोग मिल जाएंगे, लेकिन इन्हें खरीदने के लिए ज्यादा विकल्प आपको नहीं मिलेंगे। वाद्य यंत्र खरीदने के लिए शहर में एकमात्र शो रूम है, जहां सभी प्रकार के इंस्ट्रूमेंट मिलते हैं और रिपेयर होते हैं। इसके अलावा छोटी-बड़ी लगभग 25 से 30 दुकानें हैं, जहां परंपरागत भारतीय वाद्य यंत्र मिलते हैं।

ये हैं भारतीय परम्परागत वाद्य यंत्र
तबला, ढोलक, सारंगी, बांसुरी, रावण हत्था, मोरचंग, अलगोजा, कमायचा, सिंधी सारंगी, लंगा, खड़ताल आदि सभी परम्परागत यंत्र हैं। आम लोग अब इनके नाम भी भूलने लगे हैं।

वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट्स का ज्यादा क्रेज
म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स के एकमात्र शोरूम से पता चला कि पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव इन इंस्ट्रूमेंट्स की खरीद पर भी पड़ा है। लोग इलेक्ट्रिक गिटार, केसिओ, वॉयलिन आदि की सबसे ज्यादा मांग करते हैं। भारतीय वाद्य यंत्रों की मांग विशेषरूप से विदेशी लोग ही करते हैं। इनमें भी तबला और सितार सबसे ज्यादा खरीदे जाने वाले वाद्य यंत्र हैं।

musical instrument

आयात किए जाते हैं यंत्र
जोधपुर में इलेक्ट्रिक इंस्ट्रूमेंट विदेशों से ही आयात किए जाते हैं। हालांकि गिटार कोलकाता में भी बनाए जाते हैं, लेकिन उनकी डिमाण्ड ज्यादा नहीं है और साउण्ड भी अच्छा नहीं निकलता। विदेशों से मंगवाए गए इन यंत्रों का सर्विस सेंटर भी केवल जयपुर में ही है। यानि इन यंत्रों की बिक्री इतनी भी नहीं है कि कंपनी यहां सर्विस सेंटर खोले।

स्कूलों में बनने लगी म्यूजिकल लैब
हालांकि ये खुशी की बात है कि शहर की विभिन्न स्कूलों में बच्चों का संगीत में इंटरेस्ट डवलप करने के लिए म्यूजिकल लैब्स खोली गईं हैं। म्यूजिक को लेकर पेरेंट्स की मानसिकता भी बदली है और अब कई माता-पिता बच्चों को संगीत की दुनिया में प्रवेश भी दिलवा रहे हैं।

इनका कहना है

बदलाव आया है
म्यूजिक रियलिटी शो और स्कूलों में म्यूजिक का पीरियड होने से बदलाव आया है। हालांकि यंग जनरेशन में गिटार का क्रेज ज्यादा है। परम्परागत वाद्य यंत्रों में सितार व तबला की मांग है, जो विदेशी लोग करते हैं।
रवि चौहान, म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट शोरूम संचालक का बेटा

बच्चों से नौकरी करवाएंगे
भाद्रपद व सावन के महीने में ही ज्यादा बिक्री होती है। अब चमड़ा महंगा मिलता है, प्लास्टिक का चलन हो गया है, तो हमारे यहां से खरीद कम हुई है। हाथ के काम में मेहनत ज्यादा है, लेकिन पैसा कम है। अब बस हमारी पीढ़ी तक ही ये व्यवसाय करेंगे। बच्चों से नौकरी करवाएंगे।
- राजेश व भवानी शंकर चौहान, वाद्य यंत्र दुकान संचालक

फैक्ट फाइल

- इलेक्ट्रिक गिटार व आरती मशीन (इलेक्ट्रिक नगाड़ा) सबसे महंगे वाद्य यंत्र

- शिवजी का डमरू सबसे सस्ता
- ढोलक व तबले के लिए गुजरात से आता है चमड़ा

- यूपी के अमरोहा से आती है परंपरागत यंत्रों में इस्तेमाल होने वाली आम व शीशम की लकड़ी