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राष्ट्रीय विज्ञान दिवस – होम मैनेजमेंट से एडवांस टेक्नोलॉजी तक पहुंची महिलाएं

28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। आज महिलाएं केवल घर या किचन ही नहीं संभाल रही बल्कि हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं। यहां तक कि विज्ञान में भी महिलाओं का दबदबा लगातार बढ़ता रहा है। ऐसी ही कुछ महिलाओं की कहानियांं, जो अपनी रिसर्च के जरिए न केवल कई उपलब्धियां हासिल कर चुकी हैं, बल्कि देश की उन्नति में भी अपना योगदान दे रही हैं-

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जयपुर

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Rakhi Hajela

Feb 28, 2024

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस -  होम मैनेजमेंट से एडवांस टेक्नोलॉजी तक पहुंची महिलाएं

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस - होम मैनेजमेंट से एडवांस टेक्नोलॉजी तक पहुंची महिलाएं

साइबर क्राइम से होगा बचाव
भोपाल की आरजीपीवी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत प्रियंका दीक्षित ऐसे सॉफ्टवेयर मॉडल विकसित कर रही हैं जिससे साइब्रर क्राइम पर लगाम लगना संभव हो सकेगा। वह बताती हैं कि उनकी यह रिसर्च अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल में प्रकाशित हो चुकी है। आमजन को साइबर क्राइम से बचाने के लिए एआइ या मशीन लर्निंग की मदद से ऐसे मॉडल तैयार किए जा रहे हैं, जिससे साइबर अपराध होने से पहले ही पता चल सकेगा और आमजन सतर्क हो सकेंगे। इसके लिए एआइ की मदद से डिफेंसिव तकनीक विकसित की गई है, जिसे ब्लॉक चैन, लोट डीप लर्निंग जैसी तकनीक का उपयोग कर बनाया गया है। साथ ही नई अल्गोरिद्म डिजाइन जावा, पाइथन प्लेटफॉर्म पर तैयार की जा रही है। उनका कहना है कि जब उन्होंने 2015 में पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया तब साइबर सिक्योरिटी ट्रेडिंग टॉपिक था। ऐसे में उन्होंने इसी दिशा में रिसर्च करने के बारे में सोचा। आज साइबर फ्रॉड पर लगाम कसने के लिए ऐसी तकनीक की जरूरत है।

न्यू बोर्न बेबी की सांस होगी मॉनिटर

आईआईटी गुवाहाटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी करने वाली श्रुतिधरा शर्मा वर्तमान में आईआईटी जोधपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। यहां उन्होंने फर्न लैब के नाम से अपनी प्रयोगशाला स्थापित की। जिसमें फ्लेक्सिबल सेंसर पर काम चल रहा है। वह बताती हैं कि जब न्यू बोर्न बेबी आईसीयू में होता है और उसकी सांसों को मॉनिटर किया जाता है। फ्लेक्सिवल सेंसर की मदद से पता लगाया जा सकेगा कि बच्चा सामान्य रूप से सांस ले रहा है या उसे परेशानी आ रही है, क्योंकि यह ऐसे सेंसर हैं जो ऊबड़-खाबड़ या समतल सतहों पर चिपक सकते हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक भारत सेंसर के लिए विदेशों पर निर्भर रहा है। मैं इसे बदलना चाहती हूं और यह साबित करना चाहती हूं कि बाधाओं के बावजूद भारत अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता है। उन्हें इंटरनेशनल सोसायटी फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी की ओर से ‘यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड 2023’ मिल चुका है।

फोरेंसिक रिसर्च में डीएनए तकनीक

केरला की डॉ. वीणा नायर ने डीएनए टेक्नालॉजी में रिसर्च की है। वह बताती हैं कि कई अपराधों को सुलझाने के लिए फोरेंसिक रिसर्च का प्रयोग डीएनए तकनीक के जरिए किया जा सकता है। इस तकनीक का प्रयोग सिविल मामलों को सुलझाने के लिए भी किया जा सकता है, जिनमें बच्चों के जैविक माता-पिता की पहचान, इमिग्रेशन मामले और मानव अंगों के ट्रांसप्लांट आदि शामिल हैं। उनका कहना है कि आनुवांशिक इंजीनियरिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए वैज्ञानिक एक जीव के जीनोम को संशोधित करते हैं। इसमें रेकॉम्बीनैंट डीएनए टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक में आनुवांशिक पदार्थों डीएनए तथा आरएनए के रसायन में परिवर्तन कर उसे मेजबान जीवों (होस्ट आर्गेनिज्म) में प्रवेश कराया जाता है। इससे इनके लक्षणों में परिवर्तन आ जाता है। रिसर्च में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि प्रथम रेकॉम्बीनैंट डीएनए का निर्माण साल्मोनेला टाइफीमूरियम के सहज प्लाज्मिड में प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन के जुडऩे से हो सका था। डीएनए तकनीक का अच्छा खासा उपयोग फसलों के उत्पादन और प्रतिरोधी क्षमता के इस्तेमाल में किया जा सकता है। फसलों के उत्पादन में आनुवांशिक इंजीनियरिंग का उपयोग कर रोग और कीटों से प्रतिरोधी फसलों को प्राप्त किया जा सकता है। वीणा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं।