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मिनी सचिवालय के लिए जयपुर में नहीं जमीन, कोटा में आईएल की जमीन पर बनेगा

जयपुर कलक्टर ने कई बार पत्र लिखा

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जयपुर . प्रदेश के सभी जिलों में मिनी सचिवालय बनाने की योजना है। इसके पहले चरण में शामिल जयपुर के लिए करीब 6 माह बाद भी मिनी सचिवालय के लिए जमीन नहीं मिल सकी है। जबकि गंगानगर में शुगर मिल की जमीन पर बन रहे मिनी सचिवालय की तर्ज पर कोटा में आईएल की जमीन पर इसका निर्माण होगा।

सूत्रों के अनुसार मिनी सचिवालय के लिए करीब 15 हैक्टेयर भूमि की जरूरत होगी। इसमें कलक्टर, एडीएम, समाज कल्याण, एसपी ऑफिस, स्टांप एंड रजिस्ट्रार, पीएचईडी, पीडब्लूडी समेत 38 से अधिक जिला कार्यालय एकसाथ चल सकेंगे। मिनी सचिवालय के लिए बहुमंजिला इमारत बनाई जाएगी। पहले चरण में जयपुर समेत 12 जिलों को शामिल किया गया था। अलवर और गंगानगर में योजना पर काम शुरू हो चुका है।

जबकि जयपुर में जिला प्रशासन ने पीएचक्यू के पास खाली जमीन का चयन किया लेकिन यह जमीन फिलहाल मेट्रो के पास है। जिला कलक्टर ने जीडीए को कई बार पत्र भेजे लेकिन कुछ नहीं हुआ। दूसरे चरण में शामिल कोटा के लिए आईएल की जमीन सरकार ने पसंद की है। इसके लिए प्रस्ताव भी तैयार किए जा रहे हैं।

गंगानगर शुगर मिल की तर्ज पर कोटा में

सरकार ने गंगानगर में मिनी सचिवालय के लिए पुरानी शुगर मिल की जमीन का चयन किया था। गंगानगर यूआईटी को इसे विकसित करने की जिम्मेदारी दी। यूआईटी को राशि के बंदोबस्त के लिए शुगर मिल की कुछ जमीन टाउनशिप के लिए नीलाम करने की छूट सरकार ने दी थी। इसी तर्ज पर अब कोटा में आईएल की जमीन पर मिनी सचिवालय बनाने की योजना है।

पहले चरण में ये जिले शामिल

जयपुर, गंगानगर, अलवर, सीकर, प्रतापगढ़, जैसलमेर , सिरोही, जोधपुर , बांसवाड़ा, चूरू, टोंक और धौलपुर।

एक छत के नीचे होंगे सभी काम

जयपुर समेत अधिकांश जिलों में कलक्ट्रेट समेत अन्य सरकारी दफ्तर अलग-अलग जगह बने हुए हैं। इससे लोगों को छोटे-छोटे कामों के लिए भी यहां-वहां चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। अधिकांश भवन रियासतकाल के होने के कारण ये जर्जर भी हो रहे हैं। इसके मद्देनजर सरकार सभी विभागों को एक ही छत के नीचे लाना चाहती है। वहीं जयपुर में बनीपार्क स्थित कलक्ट्रेट पर यातायात का भारी दबाव है। कलक्ट्री पहुंचने में लोगों को परेशानी होती है।

जयपुर जिला कलक्टर सिद्धार्थ महाजन ने बताया की मिनी सचिवालय के लिए भूमि अब तक नहीं मिली है। पीएचक्यू के पास की जमीन दिलाने के लिए कई बार जीडीए को पत्र लिखे जा चुके हैं।