सियासत के ‘खिलाड़ी’ हैं खिलाडिय़ों के ‘खिलाड़ी’
जयपुरPublished: Sep 20, 2018 01:50:13 am
क्या नेताओं और अफसरों के शिकंजे से निकल पाएंगे खेल संघ ?
ह्मूमन डेवलप्मेंट का इंडेक्स हैं खेल। ओलंपिक-एशियाड या फिर कोई अन्य अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में मेडल टैली में विकसित देशों का दबदबा रहता है। स्पोट्र्स आज नेशनल प्राइड का विषय भी हैं। लेकिन इन खेलों को चलाने के पीछे एक पूरा सैटअप होता है। इनमें शामिल होते हैं खेल संघ और उसके पदाधिकारी। जी हां, खिलाडिय़ों को खेल प्रैक्टिस से समय मिले तो वे खेलों की राजनीति में उतरें। ऐसे में देश में नेताओं और अफसरों ने खेल संघों को अपना ठिकाना बना लिया। दबदबा भी बना रहता है और सियासत में भी फायदा मिलता है। आंकड़ों के अनुसार भारत में वर्ष 2017 तक 47 फीसदी खेल संघों में नेता काबिज थे। खेलों के जरिये राजनीति को चमकाने का मौका भी मिलता है। साथ ही इसका एक और छिपा हुआ पक्ष भी है कि कुछ खेल संघ जैसे क्रिकेट, बैडमिंटन और टेनिस काफी मलाईदार भी हैं। और यदि नेता इनके अध्यक्ष अथवा किसी अन्य अहम पदों पर हैं तो फिर पांचों अंगुलियां घी में रहती हैं।
खेल संघों में कैसे हो सफाई?
विभिन्न अदालतों की ओर से समय-समय पर खेल संघों में नेताओं और अफसरों के दखल को कम अथवा खत्म करने के आदेश दिए गए। क्रिकेट के लिए तो बकायदा लोढ़ा समिति का गठन तक कर दिया गया। लेकिन इसकी स्थिति बिना दांत वाले शेर के समान हो गई है। हालिया घटनाक्रम में राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन (आरसीए) को भंग कर दिया गया है और कांग्रेस के बड़े नेता सीपी जोशी बोल्ड हो गए। वैसे भी आरसीए सियासी उठापटक का केंद्र रहा है। बड़ा सवाल है कि खेल संघों में सफाई कैसे हो? राष्ट्रीय खेल विकास बिल और खेलों में धोखाधड़ी (निवारण) बिल अभी लंबित हैं। इन्हे पास कराने पर देश में खेलों का विकास हो सकता है। और मेडल टैली में देश का नाम टॉप फाइल में शुमार हो सकता है। वरना सियासत के खिलाड़ी ही खिलाडिय़ों के खिलाड़ी बने रहेंगे।