
postpartum depression
सविता व्यास
जयपुर। मातृत्व को प्रकृति का अनमोल उपहार माना जाता है, लेकिन कई बार यह खुशी मानसिक तनाव और अवसाद का कारण बन जाती है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन (पीपीडी) एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जो बच्चे के जन्म के बाद 22% मांओं को अपनी चपेट में ले रही हैं। देश में 99% महिलाओं को इसकी जानकारी तक नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप कई बार भयावह घटनाएं सामने आती हैं। जयपुर और अहमदाबाद के मामले मांओं द्वारा अपने नवजातों की हत्या के मामले इस अनदेखी सच्चाई को उजागर करते हैं। राजस्थान में यह समस्या विशेष रूप से गंभीर है, जहां सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारकों ने इसे और जटिल बना दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में शहरी जिलों में 2023-24 में पीपीडी से जुड़े 150 से अधिक मामले पाए गए, जिनमें 10% में हिंसक/आत्मघाती कदम रिपोर्ट किए गए। जैसलमेर में 2011 में 54 मामले दर्ज किए गए।
जयपुर-अहमदाबाद में दिल दहलाने वाली घटनाएं
2 मार्च 2024 को जयपुर में अंजुम नाम की एक मां ने अपने डेढ़ माह के बच्चे का सर्जिकल ब्लेड से गला रेत दिया। उसने बताया कि बच्चे का लगातार रोना, नींद की कमी और अकेलापन उसे मानसिक रूप से तोड़ रहा था। इसी तरह, 7 अप्रैल 2025 को अहमदाबाद में 22 वर्षीय करिश्मा बघेल ने अपने नवजात को पानी की टंकी में फेंककर उसकी जान ले ली। दोनों मामलों में मांएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन से जूझ रही थीं, लेकिन समय पर सहायता न मिलने के कारण उन्होंने यह खौफनाक कदम उठाया।
राजस्थान में क्या है पीपीडी की हकीकत
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में 20-25% मांएं बच्चे के जन्म के बाद किसी न किसी रूप में अवसाद का शिकार होती हैं। जयपुर, जोधपुर और उदयपुर जैसे शहरी जिलों में ये मामले सबसे अधिक दर्ज हुए हैं, जहां सामाजिक दबाव और पारिवारिक समर्थन की कमी प्रमुख कारण हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच न होना स्थिति को और गंभीर बनाता है। जयपुर में 2023-24 में पीपीडी से संबंधित 150 से अधिक मामले सामने आए, जिनमें से 10% मामलों में मांओं ने आत्मघाती या हिंसक कदम उठाए।
क्या हैं लक्षण और कैसे करें पहचान
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षणों में चिड़चिड़ापन, बच्चे से लगाव न होना, अत्यधिक रोना, अकेलापन, और छोटी बातों पर गुस्सा शामिल हैं। कई मांएं अपनी शारीरिक बनावट को लेकर भी असहज महसूस करती हैं। परिवार का समर्थन न मिलने पर ये लक्षण और गंभीर हो सकते हैं। नींद पूरी होने से वे तनाव में रहती हैं।
समाधान और जागरूकता की जरूरत
पीपीडी से निपटने के लिए जागरूकता, काउंसलिंग और समय पर चिकित्सकीय हस्तक्षेप जरूरी है। राजस्थान में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तार देने की आवश्यकता है। सरकार और एनजीओ को मिलकर मातृत्व स्वास्थ्य केंद्रों में पीपीडी स्क्रीनिंग और काउंसलिंग की सुविधा शुरू करनी चाहिए। परिवारों को भी मांओं के भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है।
मनोवैज्ञानिक और सामाजिक चुनौतियां
पीपीडी के पीछे हार्मोनल बदलाव, नींद की कमी, शारीरिक थकान और सामाजिक दबाव प्रमुख कारण हैं। राजस्थान में संयुक्त परिवारों में मांओं पर बच्चे की देखभाल के साथ-साथ घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ पड़ता है, जिससे तनाव बढ़ता है। पीडि़त महिलाएं अपनी समस्याएं खुलकर नहीं बता पाने के कारण भी डिप्रेशन में चली जाती हैं और कभी-कभी भयावह कदम उठा लेती हैं।
Updated on:
14 Oct 2025 04:16 pm
Published on:
14 Oct 2025 03:54 pm
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