
लाखासर और हनुमानगढ़ में पोटाश के भण्डार
राजस्थान में मात्र 500 से 700 मीटर गहराई पर ही पोटाश के विपुल भण्डार के संकेत मिले हैं, जबकि दुनिया के पोटाश भण्डार वाले देशों में पोटाश की उपलब्धता एक हजार मीटर या इससे भी अधिक गहराई में देखने को मिलती है। प्रदेश के बीकानेर और हनुमानगढ़ में सिल्वाइट और पॉलिहाइलाइट पोटाश की संकेत मिलने से कन्वेसनल माइनिंग व सोल्यूशन माइनिंग तकनीक से पोटाश का खनन किया जा सकेगा। अतिरिक्त मुख्य सचिव माइंस, पेट्रोलियम एवं पीएचईडी डॉ. सुबोध अग्रवाल ने कहा कि बीकानेर के लखासर के 99.99 वर्गमीटर क्षेत्र में 26 बोर किए गए हैं, जिसमें से एमईसीएल द्वारा 22 बोर किए गए हैं व जियोलोजिकल सर्वें ऑफ इंडिया द्वारा 4 बोर किए गए हैं। इसमें दोनों ही तरह के यानी कि सिल्वाइट व पॉलिहाइलाइट पोटाश के संकेत मिले हैं। इसके साथ ही हनुमानगढ़ के सतीपुरा में जीएसआई द्वारा 300 वर्गमीटर क्षेत्र में किए गए एक्सप्लोरेशन में पोटाश के संकेत मिल चुके हैं। दोनों ही स्थानों पर जी 4 व जी 3 स्तर को एक्सप्लोरेशन हो चुका है। ऐसे में सतीपुरा में सीधे माइनिंग कार्य के लिए सीएल / एमएल ऑक्शन की कार्यवाही की जा सकती है। वहीं, लखासर में अभी पहले चरण में 8 और बोर के माध्यम से एक्सप्लोरेशन की आवश्यकता के साथ ही यहां भी प्लॉट तैयार कराकर कंपोजिट लाइसेंस की कार्यवाही आरंभ की जा सकती है। इसके लिए माइंस विभाग को आवश्यक निर्देश दिए जा रहे हैं।
पोटाश फर्टिलाइजर के लिए विदेशी आयात पर निर्भरता
अभी देश में पोटाश फर्टिलाइजर के लिए विदेशों से आयात पर निर्भरता है, जबकि प्रदेश में पोटाश के खनन की प्रक्रिया आंरभ होने से विदेशों से आयात की निर्भरता कम हो जाएगी और विदेशी मुद्रा की बचत होगी। एमईसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा ने कहा कि सिल्वाइट पोटाश में सोल्यूशन माइनिंग की आवश्यकता होती है, जबकि पॉलिहाइलाइट पोटाश में पंरपरागत तरीके से माइनिंग की जा सकती है। प्रदेश में दोनों ही तरह की माइनिंग की संभावनाएं उभर कर आई है।
Published on:
09 Dec 2022 09:46 am
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