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RAC Seat Issue: मंत्रीजी, ट्रेन में रात के सफर में एक ही सीट पर अजनबी महिला-पुरुष, क्या सचमुच सुरक्षित है सफर?

Indian Railways: रेलमंत्री से शिकायत, "रात में किसी अजनबी के साथ कैसे करें सफर। रेलवे का जवाब—"समझाइश और मदद से आसान हो रहा यात्रियों का सफर।

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train (Media 'X')

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Women Safety in Indian Railway: जयपुर। "रेलमंत्री जी बताइए, अनजान व्यक्ति के साथ रात में एक ही सीट पर कैसे सफर करूं?" — आरएसी कोटे से मिलने वाली सीटों पर अनजान महिला और पुरुष को साथ बैठने या सोने की मजबूरी यात्रियों के लिए असहज स्थिति पैदा कर रही है। इससे न केवल महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि पुरुष यात्री भी इस व्यवस्था से असहज महसूस कर रहे हैं।
दरअसल, इन दिनों ट्रेनों में अत्यधिक भीड़ देखी जा रही है। त्योहारों और छुट्टियों के सीजन में लगभग सभी श्रेणियों — स्लीपर से लेकर एसी कोच तक — लंबी वेटिंग लिस्ट देखने को मिल रही है। ऐसे में रेलवे द्वारा यात्रियों को राहत देने के लिए "आरएसी" टिकट जारी किए जा रहे हैं, जिसके तहत एक सीट दो यात्रियों को साझा करनी पड़ती है। समस्या तब बढ़ जाती है जब किसी महिला को किसी अनजान पुरुष के साथ या पुरुष को किसी अनजान महिला के साथ यह साझा सीट मिलती है।

महिला यात्रियों ने रेलमंत्री और जोनल रेलवे अकाउंट्स को अपनी असहजता जताई है। कई महिलाओं ने लिखा है—"रात का सफर लंबा होता है, अगर कोई घटना घटती है तो जिम्मेदार कौन होगा?" वहीं कुछ पुरुष यात्रियों ने भी कहा कि वे किसी महिला के साथ सीट साझा कर असहज महसूस करते हैं, क्योंकि छोटी सी बात भी गलतफहमी का रूप ले सकती है।

रेलवे अधिकारियों का कहना है कि वे यात्रियों की शिकायतों को गंभीरता से ले रहे हैं। टीटीई स्टाफ के अनुसार, कई बार ऐसे हालात बन जाते हैं जब अकेली महिला के साथ बच्चे भी होते हैं या बुजुर्ग यात्री होते हैं। ऐसे में कोशिश की जाती है कि सीट अदला-बदली करके महिला को महिला के साथ और पुरुष को पुरुष के साथ बैठाया जाए। अगर सीटें उपलब्ध नहीं होतीं, तो समझाइश और सहयोग से स्थिति संभाल ली जाती है। हालांकि, सीमित सीट उपलब्धता के कारण हर मामले में समाधान संभव नहीं हो पाता।

रेलवे ने यह भी स्पष्ट किया है कि अकेले सफर करने वाली महिलाएं यदि "महिला कोटा" में टिकट बुक करवाती हैं तो उन्हें आमतौर पर महिलाओं के साथ ही सीट मिलती है। लेकिन जब वे सामान्य कोटे से टिकट बुक कराती हैं और आरएसी में आती हैं, तब कभी-कभी यह समस्या सामने आती है। ऐसे में रेलवे स्टाफ और "मेरी सहेली" टीम सक्रिय रहती है ताकि किसी भी महिला यात्री को असुविधा न हो।

उत्तर पश्चिम रेलवे के अनुसार, मई माह में "मेरी सहेली" अभियान के तहत 636 ट्रेनों में अकेले सफर कर रही 8550 महिलाओं से आरपीएफ महिला स्टाफ ने संवाद किया, उनकी सुरक्षा और सुविधा की जानकारी ली तथा जरूरतमंदों को सहायता दी। रेलवे का दावा है कि यात्रियों को समझाइश और तत्काल सहायता से स्थिति संभाल ली जाती है।

फिर भी सवाल जस का तस बना हुआ है — जब एक सीट पर दो अनजान यात्रियों को रातभर सफर करना पड़ता है, तो क्या केवल "समझाइश" से सुरक्षा की गारंटी दी जा सकती है? बढ़ती शिकायतें इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि अब समय आ गया है जब रेलवे को आरएसी सीट आवंटन की इस प्रणाली पर गंभीर पुनर्विचार करना चाहिए, ताकि हर यात्री को सफर के साथ सुरक्षा का भरोसा भी मिले।