
बरसात का मौसम शुरू होते ही औषधीय गुणों से युक्त चौलाई की बुवाई करना फायदेमंद रहता है। इससे कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। चौलाई में लगभग 17.9 प्रतिशत प्रोटीन के साथ ही कार्बोहाइड्रेट, वसा व पौष्टिक रेशा आदि होते हैं। साथ ही एस्कॉर्बिक एसिड, पोटैशियम, कैल्शियम, फास्फोरस व मैग्निशियम आदि पोषक तत्व भी होते हैं।
अच्छी उपज लेने के लिए
पहली जुताई गहरी करनी चाहिए। इसके बाद 10-15 दिनों में दूसरी जुताई के साथ 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से गोबर की खाद देनी चाहिए। इससे पैदावार अच्छी मिलती है। बुवाई गीली जमीन पर करनी चाहिए। एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति की दूरी 50 सेंटीमीटर एवं पौधों के बीच की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखें। इससे उत्पादन अच्छा होता है। मोटेतौर पर लोग हरी एवं लाल दोनों ही रंगों की चौलाई खाना पसंद करते हैं।
गोबर की खाद से अच्छी पैदावार
गोबर की खाद डालने के बाद बिजाई के वक्त 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए। इससे अच्छी पैदावार होती है।
निराई-गुड़ाई आवश्यक
खरपतवार में पाए जाने वाले कीड़े फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना बहुत जरूरी है।
पोषक तत्वों से भरपूर : चौलाई में लगभग 17.9 प्रतिशत प्रोटीन के साथ ही कार्बोहाइड्रेट, वसा व पौष्टिक रेशा आदि होते हैं। साथ ही एस्कॉर्बिक एसिड, पोटैशियम, कैल्शियम, फास्फोरस व मैग्निशियम आदि पोषक तत्व भी होते हैं।
पुन: आ जाती हैं पत्तियां
बुवाई के एक डेढ़ महीने बाद ही कटाई कर बिक्री की जा सकती है। कटाई के बाद पत्तियां पुन: फूटने लगती हैं। इस तरह एक बार बोई गई फसल से तीन से चार बार उत्पादन लिया जा सकता है।
Published on:
06 Jul 2024 03:32 pm
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