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कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द होते ही सरगर्मियां तेज

Rajasthan Politics : कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द। अब वह राजस्थान विधानसभा के सदस्य नहीं रहे। इसके बाद से ही अंता विधानसभा सुर्खियों में आ गई है। भाजपा व कांग्रेस ने उम्मीदवारों के लिए खोज शुरू कर दी है, क्योंकि अंता विधानसभा सीट पर उपचुनाव होंगे।

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कांग्रेस-भाजपा (पत्रिका फाइल फोटो)

कांग्रेस-भाजपा (पत्रिका फाइल फोटो)

जयप्रकाश सिंह
Rajasthan Politics :
पिछले चार विधानसभा चुनाव से बारां जिले की सबसे हॉट सीट रही अंता से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की शुक्रवार को विधानसभा सदस्यता खत्म होने के साथ ही उपचुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। गत विधानसभा चुनाव में कंवरलाल मीणा ने कांग्रेस के तत्कालीन खनन मंत्री प्रमोद जैन भाया को 5 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। करीब 17 माह विधायक रहे कंवरलाल मीणा 2013 में मनोहरथाना से विधायक रह चुके हैं। प्रमोद जैन भाया को घेरने की रणनीति के तहत ही पिछले विधानसभा चुनाव में कंवरलाल मीणा को मनोहरथाना के बजाय अंता से टिकट दिया गया था और अंता में हुई चुनावी सभा को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी संबोधित किया था।

भाजपा - कांग्रेस के दावेदारों को लेकर चर्चा शुरू

अंता सीट रिक्त होने के बाद यहां से वापस भाजपा और कांग्रेस के दावेदारों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। दोनों ही दलों में कई पुराने चेहरों के साथ नए चेहरों के नाम सामने आ रहे हैं। लोगों में उत्सुकता इस बात की भी है कि यदि उपचुनाव होते हैं तो इस बार भाजपा से अब नया नाम किसका सामने आ सकता है।

पत्नियों के नाम की चर्चा

माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के बाद प्रमोद जैन भाया के खिलाफ कई केस दर्ज हुए। इन मुकदमों में प्रमोद जैन भाया को हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली है। ऐसे में कांग्रेस टिकट देने में इन बिन्दुओं का भी आंकलन करती है तो उनकी पत्नी के नाम पर भी चर्चा संभव है। वहीं भाजपा कंवरलाल मीणा की पत्नी को लेकर सहानुभूति कार्ड खेल सकती है।

परिसीमन में बनी थी अंता सीट

वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद अंता विधानसभा सीट बनी थी। इस सीट पर दो बार कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया ने जीत हासिल की और दो बार हार का सामना करना पड़ा, वहीं वर्ष 2013 में यहां से पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी विजयी रहे, जबकि 2018 में सैनी को भाया से हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2023 में भाया को कंवरलाल मीणा से हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने चारों बार स्थानीय व्यक्ति को ही उम्मीदवार बनाया, जबकि भाजपा ने यहां बाहरी व्यक्ति को ही टिकट दिया है।

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