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‘हर बच्चा डॉक्टर-इंजीनियर नहीं बन सकता, डमी स्कूल-कोचिंग गठजोड़ शिक्षा के लिए कलंक’, डमी स्कूलों की मान्यता को लेकर HC सख्त

राजस्थान हाईकोर्ट ने डमी स्कूलों पर सख्ती दिखाई है। कोर्ट ने कहा, कोचिंग संस्थानों से गठजोड़ शिक्षा प्रणाली के लिए कलंक है। एसआईटी गठित कर आकस्मिक निरीक्षण के निर्देश दिए। नियम तोड़ने वाले स्कूलों की मान्यता समाप्त होगी।

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जयपुर

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Arvind Rao

Sep 19, 2025

Rajasthan High Court

राजस्थान हाईकोर्ट (फोटो- पत्रिका)

जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने डमी स्कूलों पर सख्ती दिखाते हुए कहा कि इन स्कूलों का कोचिंग संस्थानों से गठबंधन और विस्तार शिक्षा प्रणाली के लिए संकट व कलंक के समान है। राज्य सरकार और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड व राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड सहित सभी शिक्षा बोर्ड एसआईटी गठित करे, जो आकस्मिक निरीक्षण कर पता लगाए कि स्कूल के समय शिक्षक और छात्र-छात्रा कोचिंग संस्थान तो नहीं जा रहे।


यदि विद्यार्थी स्कूल में गैरहाजिर है और उसी समय कोचिंग सेंटर जा रहा है तो स्कूल पर कार्रवाई कर मान्यता समाप्त की जाए। विद्यार्थियों के बेहतर भविष्य के लिए नियम बनाने की आवश्यकता है। कोर्ट ने मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और सभी शिक्षा बोर्ड को आदेश की कॉपी भेजी है।


न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने एलबीएस कान्वेंट स्कूल, दी लॉर्ड बुद्धा पब्लिक स्कूल और इनके विद्यार्थियों की याचिकाओं पर यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता स्कूल अपनी मान्यता समाप्त करने और उसमें कमी से संबंधित विवाद के बारे में सीबीएसई को अभ्यावेदन दें और बोर्ड छात्र हितों को ध्यान में रखकर उसे तय करें। इस दौरान स्कूल के विद्यार्थियों को दूसरी स्कूल में शिफ्ट नहीं किया जाए।


शिक्षा व्यापार बन गई


कोर्ट ने टिप्पणी की कि प्रदेश में अनेक स्कूल कक्षा 9 से 12 में विद्यार्थियों को डमी प्रवेश देते हैं। विद्यार्थियों को यहां आने की जरूरत नहीं रहती। बच्चे स्कूल समय में नीट-जेईई आदि की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटर जाते हैं। ऐसे में शिक्षा इन संस्थानों के लिए व्यापार बन गई। इन निजी स्कूलों में अभिभावकों के अनुरोध और कोचिंग सेंटर की मिलीभगत से डमी एडमिशन होता है।


नीट-जेईई की सीट सीमित, हर बच्चा इंजीनियर-डॉक्टर नहीं बन सकता


कोर्ट ने कहा कि नीट और जेईई आदि की सीट सीमित हैं। हर विद्यार्थी का इनमें चयन असंभव है। हर बच्चा इंजीनियर-डॉ€टर नहीं बन सकता, अभिभावक अपनी इच्छा विद्यार्थी पर थोपने के बजाए उन्हें अपना करियर चुनने की आजादी दें। शिक्षा बोर्ड इस मुद्दे पर गौर करे और सख्त नियम बनाए, जिसमें कक्षा 9 से 12 के विद्यार्थियों के लिए नियमित उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके।


याचिकाओं में कहा…


याचिकाकर्ता : सीबीएसई ने निरीक्षण कर कुछ कमियां बताते हुए एक साल के लिए स्कूलों की मान्यता समाप्त कर दी और स्कूल को सीनियर सेकेंडरी से सेकेंडरी में बदल दिया।


सीबीएसई का तर्क : याचिकाकर्ताओं ने नियमों की अवहेलना की। स्कूल में डमी छात्र, रिकॉर्ड में हेराफेरी मिली। तय अनुपात में शिक्षक आदि नहीं थे।