कोर्ट ने इस मामले में एमसीआई के कार्रवाई नहीं करने पर हैरानी जताई है, वहीं अदालती आदेश की पालना के लिए छह माह का समय दिया है। कोर्ट ने एमसीआई से 6 माह की समयसीमा के बाद 15 दिन में पालना रिपोर्ट पेश करने और प्रवेश से सम्बन्धित लम्बित सभी शिकायतों का त्वरित निस्तारण करने के आदेश भी दिए हैं। न्यायाधीश मनीष भण्डारी ने विवेक बुगालिया तथा रवि कुमार शर्मा व अन्य की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया है।
आपको बता दें याचिकाओं में कहा गया था कि याचिकाकर्ताओं ने पीसीपीएमटी 2015 में भाग लिया और यह प्रवेश परीक्षा एमडीएस यूनिवर्सिटी अजमेर के जरिए हुई थी। याचिकाकर्ताओं को मेरिट में आने के बावजूद एमबीबीएस—बीडीएस में प्रवेश नहीं दिया, जबकि पीसीपीएमटी में शामिल नहीं होने वाले, पीसीपीएमटी में मात्र 5 से 15 प्रतिशत अंक लाने वालों और बारहवीं कक्षा में पात्रता लायक अंक नहीं लाने वालों को प्रवेश दे दिया गया है। कोर्ट ने इस मामले में हैरानी जताते हुए कहा है कि मामला ध्यान में आने के बावजूद एमसीआई ने कार्रवाई नहीं की।
कार्रवाई के बजाय केवल पत्राचार ही करती रही। कार्रवाई में देरी को लेकर एमसीआई की निंदा करते हुए कहा है कि यदि एमसीआई कार्रवाई करता तो मामले के हाईकोर्ट आने की नौबत ही नहीं आती। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित प्रवेश से जुडी कमेटी की भूमिका पर भी कोर्ट ने हैरानी जताई है। कोर्ट ने निजी मेडिकल कॉलेजों के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी कर प्रवेश देने को अवमानना का मामला बताया है।