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रविंद्र सिंह भाटी का दोस्त ने छोड़ा साथ तो हार गए चुनाव! जानें कैसे आई दोस्ती में दरार

ravindra singh bhati lose election : बाड़मेर-जैसलमेर से निर्दलीय उम्मीदवार रविंद्र सिंह भाटी का साथ उनके दोस्त अशोक गोदारा के छोड़ने के बाद भाटी चुनाव हार गए है। जानिए कैसे आई दोस्ती के रिश्त में दरार...

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Ravindra Singh Bhati friend Ashok Godara : राजस्थान की बहुचर्चित सीट बाड़मेर-जैसलमेर से निर्दलीय उम्मीदवार रविंद्र सिंह भाटी की हार हो चुकी है। कांग्रेस उम्मीदवार उम्मेदाराम बेनीवाल ने भाजपा के कैलाश चौधरी व निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह को पटखनी दी है। रविंद्र सिंह की हार के बाद लगातार उनके दोस्त अशोक गोदारा को लेकर चर्चा जोरों पर है।

लोगों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के दौरान अशोक गोदारा ने उनका साथ दिया तो भाटी चुनाव जीत गए। जबकि इस बार अशोक गोदारा ने भाटी का साथ छोड़कर उनके प्रतिद्वंदी कैलाश चौधरी के प्रचार में जुटे रहे। हालांकि केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी भी चुनाव नहीं जीत सके।

कांटे की रही टक्कर

बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार रविंद्र सिंह भाटी के चुनावी मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था। इस चुनाव में भाटी के खास दोस्त अशोक गोदारा बाड़मेर-जैसलमेर से भाजपा प्रत्याशी कैलाश चौधरी के लिए चुनाव प्रचार में जुटे रहे।

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दोस्त ने प्रतिद्वंदी का दिया साथ

रविंद्र सिंह भाटी और अशोक गोदारा के बीच आई दरार को लेकर जब गोदारा से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जब पति-पत्नी की अलग पार्टी हो सकती है तो दोनों की क्यों नहीं, बस विचारधारा की बात है। मेरे एक भाई कांग्रेसी तो मैं खुद भाजपा से हूं और एक भाई (रविंद्र सिंह) निर्दलीय है।

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पहले सोना अब लोहा कैसे…?

गोदारा ने कहा कि मेरा उनसे कोई मनमुटाव नहीं है। मैंने कौनसी उनसे विधायकी मांग ली। वो विधायक हैं और विधायक रहेंगे। हमारी को संपत्ति को लेकर लड़ाई नहीं है। बाकी छोटी-मोटी बातें होती रहती है। घर में बर्तन बजते रहते है। अशोक गोदारा जब तुम्हारे साथ को सोना था फिर आज कैसे लोहा हो गया?

अशोक गोदारा ने बताया कि उनकी लास्ट बात भाजपा में ज्वॉइनिंग से पहले हुई थी। उसके बाद वे (रविंद्र सिंह) चुनाव में व्यस्त हैं तो मैंने बात करना मुनासिब नहीं समझा। उन्होंने कहा कि वे एक बार बुलाए तो सही… गोदारा अंतिम समय तक खड़ा रहेगा।

अशोक गोदारा ने भाजपा में शामिल होने पर कहा कि वे भाजपा की विचारधारा से पहले ही प्रभावित थे। पहले इस परिवार से जुड़े नहीं थे, अब इस परिवार से जुड़ गए हैं। विचारधारा की लड़ाई है।

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