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गोलियां लगने पर भी आखिरी दम तक लड़ता रहा ‘जयपुर‘ का ये ‘लाल‘, पाकिस्तानियों के मंसूबे किये नाकाम

लाड़ले का चेहरा भी नहीं देख पाए मां-बाप...

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जयपुर

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Dinesh Saini

Jan 25, 2018

Jaipur Martys

जयपुर। दुश्मन ने अचानक हमला किया। दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी। दुश्मनों की संख्या बहुत ज्यादा थी फिर भी डट कर मुकाबला किया। दोनों पैरों में गोलियां लगी, खून की धाराएं बहने लगी, फिर भी पीछे हटने के बजाए दुश्मनों से मुकाबला करना ही धर्म समझा और वीरता से लड़ते हुए मातृभूमि के चरणों में प्राण न्यौछावर कर दिए। ऐसे थे जयपुर के जांबाज लेफ्टिनेंट ‘अमित भारद्वाज‘।


लेफ्टिनेंट ‘अमित भारद्वाज‘ के साथियों ने बताया कि जब बजरंग चौकी की तरफ भेजी गई जांच टोली लौटकर नहीं आई, तो जयपुर के जांबाज लेफ्टिनेंट ‘अमित भारद्वाज‘ ने उन्हें ढूंढने जाने की इच्छा जाहिर की। लेफ्टिनेंट अमित अपने 15 जवानों के साथ काकसर स्थित अपने चार जाट रेजीमेंट के आधार कैंप के साथ रवाना हुए। डेढ़ दिन तक वे बर्फीली पहाडिय़ों पर चढ़ते रहे और ज्यों ही बजरंग चौकी के निकट पहुंचे उन्हें पहाड़ी पर कुछ हलचल महसूस हुई। उन्होंने अपने जवानों की टोली को वहीं रोक, स्वयं दो जवानों को साथ लेकर दुश्मनों की टोह लेने पहाड़ी पर चढऩे लगे। तभी ऊपर से अंधाधुंध फायरिंग होने लगी। लेफ्टिनेंट अमित के दोनों पैरों में गोलियां लग गई। ऐसी नाजुक स्थिति को भांपते हुए लेफ्टिनेंट अमित ने अपने साथी को नीचे जाकर सूचना देने और सहायता के लिए आदेश दे दिया। लेफ्टिनेंट अमित की हालत देख जवानों ने उनसे वापस नीचे चलने को कहा, लेकिन राजस्थान की माटी में जन्मे अमित ने दुश्मन को पीठ दिखाने के बजाए उनसे लौहा लेने का निर्णय लिया।


बजरंग चौकी पर बैठे घुसपेटियों की गोलियां लगातार चलती रही। अमित के पास गोलियां अब कम होने लगी थी। फिर भी वे दुश्मनों का डट कर मुकाबला करते रहे। अचानक एक और गोली आकर उनके पेट में लगी। ऐसे में उनके साथ वाला सैनिक उन्हें उठाकर नीचे लाने लगा तभी एक गोली उस सैनिक को भी लग गई और अमित वहीं गिर पड़े। वह क्षेत्र पाकिस्तानी घुसपेटियों के कब्जे में था। ऐसे में जब वह पूरा क्षेत्र घुसपेटियों के कब्जे से आजाद हुआ तब लेफ्टिनेंट अमित और अन्य सैनिकों के शवों को वापस लाया गया। 27 वर्षीय राजस्थान का ये जांबाज सपूत दुश्मनों को पीठ दिखाने के बजाए उनसे लौहा लेते हुए शहीद हो गया और पूरे देश को गोरान्वित कर गया।

लाड़ले का चेहरा भी नहीं देख पाए मां-बाप
लेफ्टिनेंट अमित भारद्वाज के मां-बाप और परिवार के अन्य सदस्य अपने लाड़ले ‘अन्नू‘ का आखिरी बार चेहरा भी नहीं देख पाए। लेफ्टिनेंट अमित कारगिल सेक्टर में बजरंग चौकी के निकट शहीद हुए थे और वह क्षेत्र पाकिस्तानी घुसपेटियों के कब्ज में रहा और लेफ्टिनेंट अमित का शव साठ दिनों तक पहाड़ों पर पड़ा रहा। ऐसे जब सेना ने उस क्षेत्र को दुश्मनों से आजाद करवाया तब तक लेफ्टिनेंट अमित के शव की चमड़ी गलने लग गई थी। इसलिए उनका शव ताबूत से बाहर ही नहीं निकाला गया। मां-बाप ने अपने लाड़ले का मुंह देखे बिना ही मालवीय नगर स्थित अपने निवास पर ताबूत खोले बिना ही सभी धार्मिक क्रियाएं निपटाई। चिता पर भी इस सपूत का शव ताबूत सहित ही रखा गया और अंतिम विदाई दी गई।

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हनुमान जी के भक्त थे अमित

लेफ्टिनेंट अमित भारद्वाज हनुमान जी के परम भक्त थे। वे शुरू से ही जिंदादिल और निडर इंसान थे। वर्ष 1972 में रिजर्व बैंक में कार्यरत ओपी शर्मा के यहां अमित ने जन्म लिया था। ओपी शर्मा और उनकी पत्नी सुशीला शर्मा के दो ही संतानें थी। एक बेटी सुनीता और एक बेटा अमित। बहन सुनीता अमित से बड़ी है। अमित को फोटोग्राफी का भी बहुत शौक था। उसके पास अपने खींचे फोटो के 15 एलबम थे।

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सेंट जेवियर स्कूल में की पढ़ाई
मूलत: जयपुर के बिचून गांव के निवासी अमित का बचपन जयपुर में ही बीता। उन्होंने 12वीं तक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल में प्राप्त करने के बाद राजस्थान कॉलेज से बीए किया। 1996 में संयुक्त रक्षा सेवा उत्र्तीण की और एक साल बाद में कमीशन प्राप्त कर चार जाट रेजीमेंट में नियुक्त हुए।