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वरिष्ठ रंगकर्मी पवन शर्मा का निधन, देहदान कर छोड़ी अनूठी मिसाल; इस मेडिकल कॉलेज को सौंपी गई देह

Rajasthan News: राजस्थान की राजधानी जयपुर के रंगमंच जगत को गहरा आघात लगा है। शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी, ख्यातनाम अभिनेता, कुशल निर्देशक, मधुर गायक तथा प्रकाश-संचालक पवन शर्मा का रविवार देर रात निधन हो गया।

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Senior theatre personality Pawan Sharma

फोटो- पत्रिका नेटवर्क

Rajasthan News: राजस्थान की राजधानी जयपुर के रंगमंच जगत को गहरा आघात लगा है। शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी, ख्यातनाम अभिनेता, कुशल निर्देशक, मधुर गायक तथा प्रकाश-संचालक पवन शर्मा का रविवार देर रात निधन हो गया। दिल्ली रोड स्थित निम्स अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।

एक नवंबर को उन्हें अचानक ब्रेन स्ट्रोक हुआ था, जिसके बाद उन्हें तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लगातार नौ दिन तक चले उपचार के बावजूद चिकित्सकों की सारी कोशिशें नाकाम रहीं और वे इस दुनिया-ए-फानी से विदा हो गए।

पवन शर्मा का जाना केवल एक कलाकार का जाना नहीं है, बल्कि जयपुर रंगमंच की एक पूरी पीढ़ी के संरक्षक का चले जाना है। पिछले कई दशकों से वे जयपुर के रंगमंच को अपनी ऊर्जा, समर्पण और बहुमुखी प्रतिभा से सींचते रहे थे। उनके निधन की खबर जैसे ही रंगकर्मियों के बीच पहुंची, पूरे शहर का थिएटर समुदाय शोक-सागर में डूब गया।

देह को पूर्ण रूप से दान किया

मृत्यु के बाद भी पवन शर्मा ने जीवंत मिसाल कायम की है। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार परिवार ने उनकी देह को पूर्ण रूप से दान करने का निर्णय लिया। यह देहदान समाजसेवा और चिकित्सा शिक्षा के लिए किया गया है। उनकी पत्नी ने आंसुओं भरी आंखों से बताया कि पवन हमेशा कहते थे कि मरने के बाद भी कुछ ऐसा करो कि लोगों के काम आ सकें। आज उनकी यही इच्छा पूरी हो रही है।

निम्स मेडिकल कॉलेज को उनकी देह सौंपी गई, जहां चिकित्सा छात्रों को अध्ययन और शोध के लिए इसका उपयोग किया जाएगा। यह निर्णय न केवल उनके परिजनों की उदारता को दर्शाता है, बल्कि पवन शर्मा के जीवन-मूल्यों को भी रेखांकित करता है- जीवन हो या मृत्यु, हर पल समाज के लिए जीयो।

कई विधाओं में हासिल थी महारत

पवन शर्मा जयपुर रंगमंच के उन दुर्लभ कलाकारों में थे, जिन्होंने एक साथ कई विधाओं में महारत हासिल की थी। अभिनय, निर्देशन, गायन, प्रकाश परिकल्पना, वेशभूषा डिजाइन- हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनके अभिनीत नाटक ‘राजपुताना’, ‘रॉन्ग नंबर’, ‘क्लीव’, ‘पंचनामा’, ‘दूधा’, ‘चम्पाकली का राम रुपैया’, ‘हत्त तेरी किस्मत’ और ‘सुदामा दिल्ली आए’ आज भी दर्शकों की स्मृति में जीवंत हैं। इन नाटकों में उन्होंने जिस सहजता और गहराई से पात्रों को जीवंत किया, वह दुर्लभ था।

निर्देशक के रूप में भी उनकी कलम और दृष्टि बेजोड़ थी। ‘मैं एक अभिनेता था’, ‘वेटिंग फॉर गॉडो’ और ‘कोहू संत मिले बड़भागी’ जैसे नाटकों में उन्होंने मानवीय संवेदनाओं की उन परतों को उकेरा, जो आमतौर पर मंच पर नहीं आ पातीं। सामाजिक यथार्थ और दार्शनिक गहराई का ऐसा संतुलन शायद ही किसी और निर्देशक ने साधा हो।

15 साल तक JKK से जुड़े रहे

रंगमंच की नई पीढ़ी को गढ़ने में भी पवन शर्मा का योगदान अविस्मरणीय है। जवाहर कला केंद्र की जूनियर नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला से वे पिछले पंद्रह वर्षों से अधिक समय तक जुड़े रहे। सैकड़ों बच्चे और युवा उनके मार्गदर्शन में रंगमंच से जुड़े। चिल्ड्रन थिएटर वर्कशॉप के माध्यम से उन्होंने नन्हे कलाकारों को न केवल अभिनय सिखाया, बल्कि जीवन के प्रति संवेदनशीलता और अनुशासन भी दिया। उनके शिष्य आज देश-विदेश में जयपुर रंगमंच का परचम लहरा रहे हैं।