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जयपुर की पहाडिय़ां जब यूं हरियाली की चादर ओढ़ लेतीं और 12 मोरियों के जल से तालाब लबालब हो जाते थे

जब, राजस्थान विभिन्न रियासतों में विभक्त था। तब नागपंचमी और हरियाली अमावस के बाद धार्मिक व सांस्कृतिक त्योहारों को राजा और प्रजा मिलकर उल्लास के साथ मनाते। जयपुर में होते थे ऐसे ठाठ, सुहागिनें करती थीं यूं सावन पूजा...

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vijay ram

Jul 30, 2017

एक समय में जबकि, राजस्थान विभिन्न रियासतों में विभक्त था। तब नागपंचमी और हरियाली अमावस के बाद धार्मिक व सांस्कृतिक त्योहारों को राजा और प्रजा मिलकर उल्लास के साथ मनाते। जयपुर में होते थे ऐसे ठाठ, सुहागिनें करती थीं यूं सावन पूजा...


दुनिया में गुलाबी नगरी के रूप में विख्यात जयपुर की आबादी 70 लाख पार हो चुकी है और आज भी यहां राजशाही पहचान व धार्मिक व सांस्कृतिक त्योहारों की काफी धूम मचती है। एक समय में जबकि, राजस्थान विभिन्न रियासतों में था। तब नागपंचमी और हरियाली अमावस के बाद तीज के तीन दिवसीय धार्मिक व सांस्कृतिक त्योहार को राजा और प्रजा मिलकर उल्लास के साथ मनाते। शहर की पहाडिय़ां हरियाली की चादर ओढ़ लेती और बारह मोरियों के जल से तालकटोरा और राजामल के तालाब लबालब हो जाते थे।


महाराजा सवाई प्रताप सिंह तो तीज के दिन तालकटोरा सरोवर में नौका विहार करते। उनको देखने के लिए सारा शहर तालकटोरा के पाल का बाग में उमड़ जाता। मोहल्ले व बाग बगीचों में झूले लग जाते।


सुंदर वस्त्र व आभूषण पहने सुहागने व ललनाएं रात को झूलती। तीन अगस्त 1875 की तीज पर ग्वालियर महाराजा जियाजीराव सिंधिया भी सवाई रामसिंह के बुलावे पर जयपुर आए थे। सिंधिया व सवाई रामसिंह ने तीज पर घुड़सवारी की। सिटी पैलेस के छवि निवास में ठहरे सिंधिया ने लंदन की एक कंपनी के मिनरल वाटर की बोतल का लोकार्पण किया। उस बोतल पर छवि निवास महल के बेल बूटों की कलाकृति अंकित थी।

सियाशरण लश्करी के मुताबिक 1832 की तीज पर हनुमान का रास्ता के हलवाई रामनिवास गोपीचन्द दहीवाले ने आठ मण 25 सेर घेवर बनाकर सिटी पैलेस में भेजे। सिंजारा से बूढ़ी तीज तक रियासत में तीन दिन की छुट्टी रहती थी। बड़ी महारानी के रावले में माता को रत्न जडि़त आभूषण व सोने चांदी के गोटे लगी पोशाक पहना कर अलौकिक शृंगार कराया जाता। राम निवास बाग, रामबाग व घाट की गूणी के राजनिवास बाग से माता के लिए सुगंधित फूल आते।


सावण में कृष्ण पक्ष की एकादशी पर मंदिरों में भगवान को सोने-चांदी आदि के झूलों पर बिठा सावण के हिंडोले दिए जाते। एक रिपोर्ट के मुताबिक रामगोपाल नादर ने बड़ी महारानी को सिंजारे की व नाई ने बढ़ारण जी को सवारी आने की इतला दी। जमादार लक्ष्मीनारायण ने रावले में सफाई करवाई। संगीत व नृत्य की महफिल के लिए अब्दुल रहीम घूमर वाले को सूचना दी गई। विशिष्ट मेहमानों को सुरंग से जुड़ी मोती बुर्ज में बिठाया गया। इस बुर्ज को सवाई ईश्वरी सिंह ने बनवाया था।


दिवंगत राजमाता गायत्री देवी की आत्म कथा में लिखा कि..उनकी पहली तीज पर सारा जयपुर रंग-बिरंगी पगडिय़ों और सतरंगी पोशाकों में हिलोरे मारता नजर आ रहा था। झूला झूलते समय सुहागने अपनी सखियों के कहने पर अपने पति का नाम नहीं लेती और कविता में ही पति का नाम बताती। पहले सावण में नव विवाहित को पीहर भेजा जाता।


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शिव पुराण के अनुसार शिवजी ने पहले सावण में पार्वतीजी को पीहर भेज दिया था। तीज के दिन वर्षा नहीं आने पर लोग कहते..अजी आज तो लहरियो ही कौनी भिज्यो। सावण आयो साहिबा, बरसण लाग्यो मेह, भीगी पाग पधारस्यो, जद् जाणू ली नेह। 1875 की तीज पर ग्वालियर महाराजा जियाजीराव सिंधिया भी सवाई रामसिंह के बुलावे पर जयपुर आए थे।


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