
प्रतीकात्मक तस्वीर
Animal Birth Control: जयपुर। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 7 नवंबर 2025 को जारी अंतरिम निर्देशों के बाद राजस्थान सरकार ने स्ट्रीट डॉग प्रबंधन से जुड़ी कार्ययोजना को तेज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आठ सप्ताह के भीतर विस्तृत स्थिति रिपोर्ट और अनुपालन दस्तावेज प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। यह समयावधि मुख्य रूप से संस्थानों की पहचान, उनकी सुरक्षा व्यवस्था और एबीसी (एनिमल बर्थ कंट्रोल) नियमों के अनुपालन की समीक्षा तैयार करने के लिए तय की गई है।
स्वायत्त शासन विभाग के शासन सचिव रवि जैन ने कहा कि निर्देशों का अनुपालन पूरी संवेदनशीलता और सावधानी के साथ किया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी स्ट्रीट डॉग को उठाने से पहले शेल्टर, प्रशिक्षित स्टाफ, पशु चिकित्सक, भोजन और स्वच्छता जैसी सुविधाओं का पूर्ण रूप से तैयार होना आवश्यक है। राज्य सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य, नागरिक सुरक्षा, कानूनी आदेशों और पशु कल्याण—इन सभी पहलुओं में संतुलन बनाते हुए कार्ययोजना पर तेजी से आगे बढ़ रही है।
राज्य के सभी नगरीय निकायों को निर्देश दिए गए हैं कि वे खेल परिसरों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, शैक्षणिक संस्थानों, बस स्टैंडों और प्रमुख मार्गों जैसे स्थानों की विस्तृत मैपिंग कर अपनी रिपोर्ट जल्द प्रस्तुत करें। यह प्रक्रिया उन क्षेत्रों को चिन्हित करेगी जहाँ डॉग-फ्री वातावरण बनाए रखना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि चिन्हित संस्थानों में मजबूत बाउंड्री वॉल, उपयुक्त फेंसिंग और प्रभावी कचरा प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है। जब तक यह अवसंरचना पूरी नहीं हो जाती, तब तक किसी भी प्रकार की डॉग-लिफ्टिंग नहीं की जाएगी। यह व्यवस्था स्थायी समाधान सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य मानी गई है।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि एबीसी केंद्र शेल्टर नहीं होते। श्वानों को केवल उन्हीं शेल्टरों में रखा जा सकता है जहां पर्याप्त स्थान, स्वच्छता, भोजन, चिकित्सा सेवाएं और जल आपूर्ति उपलब्ध हो। जिन निकायों के पास बेहतर शेल्टर सुविधा है, वही आगे की प्रक्रिया संचालित करेंगे।
हर संस्था में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा जो परिसर की साफ-सफाई, सुरक्षा, कचरा प्रबंधन और डॉग-फ्री वातावरण की निगरानी करेगा। यह कदम प्रत्येक स्थान पर जिम्मेदारी तय करने का माध्यम बनेगा।
नसबंदी या टीकाकरण के लिए स्ट्रीट डॉग उठाने की प्रक्रिया में स्थानीय पशु-भोजक, समुदाय प्रतिनिधि और नोडल अधिकारी के हस्ताक्षर अनिवार्य होंगे। यह व्यवस्था पारदर्शिता बढ़ाने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लागू की जा रही है।
नसबंदी और टीकाकरण के बाद श्वानों को उसी स्थान पर छोड़ा जाएगा, जब तक कि वे रेबीज़ संक्रमित, अत्यधिक आक्रामक या किसी विशिष्ट संस्थान से संबंधित न हों। राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह पूरी प्रक्रिया मानव सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों को ध्यान में रखते हुए की जा रही है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन सर्वोच्च प्राथमिकता है।
Published on:
16 Nov 2025 04:00 pm
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