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पत्रिका से साझा किए अनुभव: विधानसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा सिंह ने बताई राजनीति के बदलते दौर की कहानी

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sumitra singh

शैलेन्द्र अग्रवाल / जयपुर। कांग्रेस में रहते एक बार राजस्थान की इन्दिरा गांधी नाम दिया गया, तो एक बार पार्टी की उपाध्यक्ष रहते एक बलात्कारी के लिए मेरा टिकट काट दिया गया। भाजपा के शासन में विधानसभा अध्यक्ष रही सुमित्रा सिंह ने अपने 1957 से अब तक के राजनीतिक सफर की याद ताजा करते हुए कहा, इन दोनों घटनाओं में एक उनके जीवन का सबसे सुखद क्षण है तो दूसरा राजनीति का कड़वा घूंट।

उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन से जुड़े विभिन्न अनुभव राजस्थान पत्रिका से साझा किए।
उन्होंने कहा कि पुराने समय में राजनेता अपने विरोधियों का भी काम करने में एक सैकण्ड नहीं लगाते थे, क्योंकि विरोध मन का नहीं, बल्कि विचारों का होता था। वे 9 बार विधायक रहीं और 2004 से 2008 तक विधानसभा अध्यक्ष रहीं।

वे 1967 से 1971 तक स्वास्थ्य मंत्री तथा 1990 में कुछ महीनों के लिए उर्जा, भूजल व उच्च शिक्षा मंत्री रहीं। वे कांग्रेस और भाजपा, दोनों दलों में रहीं और निर्दलीय भी चुनाव जीता। पेश है पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा से सीधी बात...

कैस बदलाव महसूस किया, देखा है?
सुमित्रा- तब जनता से जुड़ाव, ईमानदारी अधिक होती थी। 1968 में सीएम सुखाडिय़ा जी के पास उनके विरोधी उमराव सिंह तबादले को लेकर आए। सुखाडिय़ा ने तत्काल शिक्षा निदेशक से बात की। मैंने कहा, आपको चक्कर लगवाने चाहिए थे। सुखाडिय़ा ने कहा, बात चलेगी तो याद किया जाएगा कि विरोधी होकर भी काम किया। घटना के बाद संकल्प लिया कि दुश्मनी से किसी का तबादला नहीं कराऊंगी।

राजनीति में जवाबदेही को लेकर क्या महसूस किया?
सुमित्रा- सरदार हरलाल कांग्रेस के प्रभावी नेता थे। आमरण अनशन पर थे। सुखाडिय़ा ने 24 घंटे तो छोडिए, समाधान निकालने में 12 घंटे भी नहीं लगाए। आज 20-20 दिन आंदोलन चलते रहते हैं।

राजनीति में धनबल- भुजबल कितना हावी है?
सुमित्रा- धनबल-भुजबल आज भी राजनीति पर हावी है। थिंक टैंक कहे जाने वाले गोविंदाचार्य का हवाला देकर कहा कि उनके अनुसार भी आज राजनीति में धनबल बढ़ गया है।

राजनीतिक जीवन का सबसे यादगार क्षण?
सुमित्रा- साधारण परिवार की महिला का लम्बा राजनीतिक कॅरियर होना ही सुखद क्षण है। 1971-72 में कांग्रेस ने शिवराज सिंह के क्षेत्र में प्रभारी बनाया। कांग्रेस चुनाव जीती।मैं जैसे ही विस पहुंची तो कहा गया, आइए राजस्थान की इंदिरा गांधी। यह संबोधन मेरे लिए सुखद क्षण है।

जीवन का सबसे दु:खद पल, जब राजनीति छोडऩे का ख्याल आया?
सुमित्रा- कांग्रेस ने मेरा टिकट काट एक बलात्कार के आरोपी को टिकट दिया। एक बार राजनीति छोडऩे का ख्याल आया, पर हिम्मत नहीं हारी। निर्दलीय चुनाव लड़ा और मैं जीत गई।

क्या राजनीति में युवाओं को आना चाहिए?
सुमित्रा- नई पीढ़ी को आना चाहिए, लेकिन 25 प्रतिशत राजनेता अनुभवी होने चाहिए। देश सेवा का प्रयास हो।अच्छे लोग आने चाहिए। उसके प्रयास हो रहे हैं, राजस्थान पत्रिका भी इसी तरह का प्रयास कर रहा है।

महिलाएं राजनीति में आगे क्यों नहीं आ पातीं?
सुमित्रा- मतदाता का ख्याल रखा जाए,काम के लिए मतदाता को जयपुर नहीं आना पड़े। टेलीफोन पर उसका काम हो जाए। हम जनता को सर्वोपरि रखें।नेहरू जी महिलाओं को चुनाव लड़ाने का प्रावधान किया था, तब 10 महिलाएं जीतकर आईं थीं। अब राजनीति में आने वाली महिलाएं भी दो तरह की होती हैं, एक तो वे हैं जो पति-भाई-पिता की वजह से आती हैं और दूसरी काम की वजह से।

काम की वजह से आने वाली महिलाएं ही राजनीति में टिक पाती हैं। पति-भाई के सहारे आने वाली चलती नहीं हैं। यह ख्याल नहीं आना चाहिए कि महिला को चुनाव जिताया, काम नहीं हुआ। महिलाएं काम करें और विधानसभा में भी बोलें।


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